इंडोनेशिया में क्यों बढ़ती जा रही है ग्रीन इस्लाम की मांग! आप सुनकर हैरान होंगे ग्रीन इस्लाम क्या है?
क्या है ‘ग्रीन इस्लाम? तो आपको बताते हैं!
इंडोनेशिया एक ऐसा मुल्क है, यहां मुस्लिम बहुल आबादी है, जहां की मेजॉरिटी पॉपुलेशन इस्लाम को मानती है। 87% मुस्लिम आबादी है, दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी है।
देश में करीब 1700 आइसलैंड हैं जिनके ऊपर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मंडरा रहा है। पर्यावरण चुनौतियों से गुजर रहे 27 करोड़ आबादी वाले देश के लोग धर्म की ओर बड़ी उम्मीदों से देखते हैं।
इसलिए एक एनवायरमेंटली कॉन्शियस फॉर्म ऑफ इस्लाम की मांग यानी कि जो पर्यावरण के लिए अच्छा हो इस तरह के इस्लाम की मांग वहां धीरे-धीरे बढ़ रही है चुनावों में भी उठ रही है।
तो क्या हो सकता है ग्रीन इस्लाम, इसका मतलब यह है कि क्लाइमेट चेंज से जो खतरे पैदा हो रहे हैं उसको काउंटर करने के लिए लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए धार्मिक गुरुओं की तरफ से आवाज उठाने की लोगों में अवेयरनेस जगाने की बात हो रही है
पर्यावरण बचाने का इस्लामी तरीका:
जिसमें धर्म के हवाले से उन्हें बताया जाए कि से पर्यावरण को बचाना उनकी जिम्मेदारी है और उनके धर्म में भी यह बात कही गई है और इसलिए ज्यादातर बड़े-बड़े मौलाना वहां बड़ी मस्जिदों के अपने फतवा में यह बात कह रहे हैं कि इस्लाम के मूल में है पर्यावरण को बचाना एनवायरमेंट फ्रेंडली होना।
ग्रीन इस्लाम के सिद्धांतों को अपनाएं:-
किस तरह से पैगंबर मोहम्मद साहब ने एनवायरमेंट की रक्षा करने की बात की थी। हवाला दिया जा रहा है कि रमजान में जो आप एक महीने का रोजा रखते हैं वह किस तरह से पर्यावरण के लिए अच्छा है आपको बता दें कि इंडोनेशिया जो है वह दुनिया में सबसे ज्यादा कोयला और पाम ऑयल का एक्सपोर्ट करता है और इसकी वजह से वहां पर ग्लोबल क्लाइमेट क्राइसिस के बीच में वह फंसा हुआ है और बहुत ज्यादा इसका असर हुआ है।
बाढ़ से बदलाव: कैसे प्राकृतिक आपदाओं ने जन्म दिया इंडोनेशिया के ग्रीन इस्लाम को?
बहुत सारे वहां पर इस तरह के क्लाइमेट इवेंट्स हुए हैं जिसकी वजह से पर्यावरण में बदलाव का असर दिख रहा है इंडोनेशिया मैं 2019 में वहां पर जबरदस्त बाढ़ आई थी। 2020 में वहां पे बहुत ज्यादा बारिश की वजह से दशकों में सबसे ज्यादा बुरी वहां पर बाढ़ आई थी
तो अब यहां पे यह सिखाया जा रहा है, लोगों को यकीन है पॉलिटिशन को यकीन है कि अगर धार्मिक गुरु यह बात कहते हैं तो लोग इसे सुनेंगे वहां पे मौलाना नसरुद्दीन है जो कि इतकाल मॉस्क है, इतकाल मस्जिद जकार्ता में उसके मुखिया हैं और वो यह बात कह रहे हैं कि जिस तरह से गंदगी चारों तरफ फैल रही है, कैसे हम अपनी नदियों को गंदा कर रहे हैं वो इस्लाम में बिल्कुल मना है।
इस्तिकलाल ग्रैंड मस्जिद, इंडोनेशियाई इस्लामी प्रतीक
Istiqlal Mosque साउथ ईस्ट एशिया की यह सबसे बड़ी मस्जिदों में से है वहां पर सोलर पैनल्स लगाए जा रहे हैं, यानीकि बिजली का इस्तेमाल ना करके सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जा रहा है और इसलिए इसको एक एनवायरमेंट फ्रेंडली मस्जिद बनाया जा रहा है यह ऐसी पहली जगह है इबादत की जिसकी तारीफ वर्ल्ड बैंक ने की है।
एनवायरमेंट फ्रेंडली होने के लिए मौलाना नसरुद्दीन अकेले नहीं है इस तरह के करीब बहुत सारे मौलाना और हैं जो 200 मिलियन की आबादी वाले इस मुल्क में धर्म का हवाला दे रहे हैं बार-बार यह कहकर कि हम पर्यावरण की रक्षा करें और इसलिए जो ग्रीन इस्लाम मूवमेंट है वो वहां पर जोर पकड़ रहा है।
नमाज की तरह पेड़ लगाने की आदत बनाएं
पर्यावरण को लेकर एक धार्मिक मुहिम चलाई है जिसको ग्रीन इस्लाम के नाम से जाना जा रहा है। इस्लाम में पर्यावरण के रख-रखाव को लेकर कई बाते बताई गई हैं। इस्लाम पानी की बर्बादी से लेकर पेड़ों की कटाई तक के बारे में निर्देश देता है।
इंडोनेशिया में ग्रीन इस्लाम आंदोलन
पर्यावरण की रक्षा करना एनवायरमेंट के लिए सजग रहना ये इस्लाम की जो मूल सिद्धांत है उसमें इसकी बात कही गई है ऐसा मौलाना बता रहे हैं और साथ ही ये भी कह रहे हैं कि जो क्लीन एनर्जी है उसका इस्तेमाल करना मुसलमानों के लिए बहुत जरूरी है ग्रीन इस्लाम को पॉलिटिकली भी बहुत महत्व दिया जा रहा है जो वहां के चुनाव का एक मुद्दा बना हुआ है।
प्रकृति की रक्षा, कुरान का आदेश: ग्रीन इस्लाम का उदय
यानी कि जो वहां पर सबसे बड़ा धर्म है इस्लाम उसका इस्तेमाल किया जा रहा है एक अच्छी बात को फैलाने के लिए तो यह एक ऐसी चीज है जो शायद दुनिया में और मुल्कों में भी की जा सकती है लेकिन इंडोनेशिया ने इसकी शुरुआत की है यानी धर्म का इस्तेमाल एक अच्छे काम के लिए पर्यावरण को बचाने के लिए किया जा रहा है और इस मूवमेंट को नाम दिया गया है ग्रीन इस्लाम का!