बैंकॉक के पॉश इलाके में डार्क वेब के किंगपिन की गिरफ्तारी की कहानी
तारीख: 5 जुलाई 2017
स्थान: बैंकॉक का एक पॉश रिहायशी इलाका
एक महंगे बंगले के बेडरूम में बैठा हुआ एक शख्स कंप्यूटर की स्क्रीन को निहार रहा था। उसकी उंगलियां तेजी से कीबोर्ड पर चल रही थीं। तभी दरवाजे पर एक तेज आवाज हुई। कोई गाड़ी आकर उसके गेट से टकराई थी। आदमी बाहर की ओर दौड़ा और देखा कि साधारण कपड़ों में खड़ी एक महिला पुलिसकर्मी उसे बहाना बना कर गुमराह करने की कोशिश कर रही थी। हंगामे की आवाज सुनकर जैसे ही वह बाहर आया, पुलिस ने उसे चारों तरफ से घेर लिया।
रहस्यमय शख्स का भागना
वह आदमी हाथ छुड़ाकर भागने लगा, लेकिन बाहर की बजाय अंदर की ओर। अंदर क्या था? उसका कंप्यूटर। किसी तरह वह अपने कंप्यूटर तक पहुंचा और उसे स्विच ऑफ करने की कोशिश करने लगा। अगर वह इसमें सफल हो जाता, तो पूरी कहानी वहीं खत्म हो जाती और पुलिस की सालों की मेहनत एक मिनट में बर्बाद हो जाती। हालांकि, पुलिस ने उसे पकड़ने में सफलता पाई और उसका कंप्यूटर चालू हालत में ही बरामद कर लिया।
कंप्यूटर में था क्या?
उस कंप्यूटर में ऐसा क्या था? कौन था ये शख्स और पुलिस उसे क्यों पकड़ना चाहती थी? यह जानेंगे आज के एपिसोड में। नमस्ते, मैं हूं निखिल और आप देख रहे हैं “तारीख”। आज जानेंगे इंटरनेट के पीछे की दुनिया और उसके सबसे बड़े किंग पिन के पकड़े जाने की कहानी।
इंटरनेट की दुनिया
2010 का दशक: इंटरनेट का विस्तार
इंटरनेट की शुरुआत को सालों बीत चुके थे। अब सीन ऐसा था कि आमतौर पर हम जिसे इंटरनेट कहते हैं, वह असली वर्ल्ड वाइड वेब का सिर्फ सतह है।
डीप वेब क्या है ?
इंटरनेट का एक बहुत बड़ा हिस्सा ऐसा है जो इंडेक्स नहीं है। इसे कहते हैं डीप वेब। डीप वेब कोई रहस्यमय चीज नहीं है। ऐसी वेबसाइट्स जिन्हें देखने के लिए लॉगइन करना होता है, जैसे इंटरनेट बैंकिंग वगैरह, ये सब डीप वेब का हिस्सा कही जा सकती हैं। लॉगइन करने पर आप इन्हें एक्सेस कर सकते हैं।
डार्क वेब क्या है ?
इंटरनेट का एक हिस्सा और है जिसे एक्सेस करने के लिए विशेष सॉफ्टवेयर की जरूरत पड़ती है। यह हिस्सा कहलाता है डार्क वेब। नाम से ही जाहिर होता है कि यह खुफिया जगह है। यहां काले धंधे होते हैं – ड्रग से लेकर अवैध हथियारों की तस्करी तक, चोरी किए गए क्रेडिट कार्ड की इंफॉर्मेशन से सुपारी किलिंग तक, यहां सब कुछ डार्क वेब पर चलता है।
क्योंकि डार्क वेब पर किसी को ट्रैक करना आसान नहीं होता। डार्क वेब को एक्सेस करने का सबसे कॉमन तरीका है टॉर नाम का सॉफ्टवेयर। ज्यादा डिटेल में हम यहां नहीं जा सकते, लेकिन इतना बता दें कि टॉर की शुरुआत अमेरिकी नेवल रिसर्च लैब ने की थी, यानी अमेरिकी सरकार ने, अमेरिकी सेना ने कह सकते हैं। वक्त के साथ, हालांकि डार्क वेब इंटरनेट की दुनिया में एक बाजार बन गया। एक ऐसा बाजार जिसमें अवैध धंधे होते हैं।
सिल्क रोड: डार्क वेब का बड़ा नाम
डार्क वेब पर सबसे पहले एक बड़ा नाम उभरा था सिल्क रोड। यह डार्क वेब का मार्केट था जहां शुरुआत में ड्रग्स का धंधा होता था। हालांकि, बाद में यह दूसरे ब धंधों के लिए भी इस्तेमाल होने लगा। सिल्क रोड 2011 में अस्तित्व में आया और जल्दी ही 1 लाख लोग इसका इस्तेमाल करने लगे। इस वक्त तक बिटकॉइन भी मार्केट में था, जिससे ट्रैक करना मुश्किल होता है। लिहाजा डार्क वेब पर सारा लेनदेन बिटकॉइन से होने लगा। सिल्क रोड ढाई साल तक चला। 2013 में पुलिस ने सिल्क रोड के मास्टरमाइंड को ढूंढ निकाला और सिल्क रोड को बंद कर दिया। सिल्क रोड के मास्टरमाइंड को उम्र कैद की सजा हुई। पुलिस नजीर पेश करना चाहती थी, लेकिन यह सौदा इतना मुनाफे वाला था कि जल्दी नए खिलाड़ी यहां पैदा हो गए।
अल्फा बे: डार्क वेब का नया खिलाड़ी
सिल्क रोड के बंद होने के बाद डार्क वेब पर वर्चस्व की एक नई लड़ाई शुरू हुई। इसके बाद सिल्क रोड का एक क्लोन शुरू हुआ, साथ ही कुछ नए नाम उभरे। हालांकि जैसे शुरू हुए वैसे ही वह बंद भी होते गए। दरअसल, डार्क वेब पर कोई सर्विस या सामान खरीदने के लिए बिटकॉइन देने पड़ते थे जो एक विशेष अकाउंट में जमा होते थे। डार्क वेब के नए खिलाड़ियों ने एक नया काम शुरू किया था। खेल क्या था? जब बहुत से बिटकॉइन जमा हो गए, वे बिना ऑर्डर पूरा किए चंपत हो जाते थे। कई बार यह भी हुआ कि डार्क वेब के बिटकॉइन अकाउंट्स हैक कर लिए गए। इस सबका फायदा मिला अल्फा बे को, जो डार्क वेब के सबसे नए और उभरते हुए खिलाड़ी का नाम था।
अल्फा बे की शुरुआत साल 2014 के जुलाई महीने में हुई। शुरू में इसमें सिर्फ चोरी किया डाटा बेचा जाता था, मसलन क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड के नंबर या ऐसी दूसरी निजी जानकारियां। जल्द ही अल्फा बे पर हथियारों और ड्रग्स की खरीद-फरोख्त भी शुरू हुई। हवाला जैसी सर्विस भी अल्फा बे पर मिलने लगी। अब इसी अल्फा बे पर आप किसी हैकर को भी हायर कर सकते थे। एक दिलचस्प बात यह थी कि अल्फा बे पर रूस से जुड़ी कोई जानकारी बेचना बैन था, शायद पुतिन के डर की वजह से। जोक्स अपार्ट, अल्फा बे का कारोबार धीरे-धीरे बढ़ता गया और जल्दी ही अल्फा बे अवैध कारोबार के लिए एक ई-कॉमर्स वेबसाइट की तरह बन गया, जिसमें शॉपिंग कार्ट में चीजें डालने जैसी सुविधाएं मिल जाती थीं।
इतना ही नहीं, अल्फा बे पर बिटकॉइन के अलावा बाकी क्रिप्टोकरेंसीज का भी इस्तेमाल होता था। अल्फा बे की यूजर्स की संख्या में जल्दी इजाफा हुआ और साल भर के अंदर 2 लाख से ज्यादा ग्राहक अल्फा बे पर खरीददारी करने लगे। वहीं हजारों सेलर इसमें अपनी सर्विस और सामान बेचने लगे। हर तरह के सेलर हर तरह की सर्विस। जैसे हमने आपको पहले बताया, साल 2017 आते-आते अल्फा बे पर चार करोड़ रुपए प्रति दिन का लेनदेन होने लगा। इनमें से 4% कमीशन अल्फा बे का मालिक लेता था। यानी कुछ ही सालों में अल्फा बे का मालिक करोड़पति बन गया। अल्फा बे ने आगे चलकर कुछ और नामों को अपने साथ मिलाया। मसलन, डी स्नेक नाम का एक यूजर अल्फा बे के मालिक और यूजर के बीच मिडलमैन का काम करता था। साथ ही वेबसाइट की दिक्कतों को भी वही निपटाता था। धीरे-धीरे अल्फा बे के मालिक ने खुद को प्लेटफार्म से पूरी तरह अलग कर लिया और पूरा धंधा डी स्नेक को दे दिया। इसके बाद भी अल्फा बे और अवैध कारोबार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करते रहे। इसी बात से पुलिस परेशान थी।
अल्फा बे के मास्टरमाइंड की तलाश
अमेरिकी अधिकारियों के सामने सवाल था कि डार्क वेब का किंगपिन असल में है कौन? अल्फा बे के मास्टरमाइंड को कैसे खोजा गया? इस पर वाइड मैगजीन में जर्नलिस्ट एंडी ग्रीनबर्ग ने एक डिटेल आर्टिकल लिखा है। ग्रीनबर्ग लिखते हैं कि अमेरिकी अधिकारियों के पास मास्टरमाइंड तक पहुंचने का एक ही रास्ता था – जिस सर्वर से अल्फा बे की वेबसाइट काम करती थी, उस सर्वर तक पहुंच कर ही उसे पकड़ा जा सकता था। अब इस सर्वर का यूं पता लगाना मुश्किल था क्योंकि वेबसाइट का पता उसके आईपी एड्रेस में होता है। अब डार्क वेब के लिए इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर आईपी एड्रेस लगातार बदलते रहते हैं, इसलिए वेबसाइट किस सर्वर से चल रही है, इसे ट्रैक करना लगभग असंभव होता है। इस मुश्किल के चलते पुलिस ने एक दूसरा तरीका अपनाया। अधिकारी खुद अल्फा बे पर यूजर बनकर ड्रग्स के ऑर्डर देने लगे, ताकि शायद इससे कोई सुराग मिले। हालांकि इस तरीके से उन्हें सिर्फ डीलर का ही पता चला। असली खिलाड़ी यानी अल्फा बे के मालिक को पकड़ना इससे कहीं टेढ़ी खीर थी। काम मुश्किल था।
बड़ा सुराग
लेकिन फिर साल 2016 में पुलिस के हाथ एक सुराग लग गया। साल 2006 की बात है, अमेरिकी ड्रग लॉ इंफोर्समेंट एजेंसी के अधिकारी रॉबर्ट मिलर को एक मेल आया और मेल के अंदर एक ईमेल एड्रेस था। अब यह जो ईमेल था, पुलिस को एक अनजान शख्स ने भेजा था, लेकिन इसके जरिए उन्हें अल्फा बे मामले में एक बड़ा सुराग मिल गया।
ऑपरेशन बेनेट
अल्फा बे के मालिक, एलेक्जेंडर केजस, बैंकॉक में अपने महल में आराम से रह रहा था। ऑपरेशन बेनेट के तहत, पुलिस ने एक योजना बनाई। सबसे पहले अल्फा बे को बंद किया जाएगा और इसके बाद यूरोपीय पुलिस हंसा मार्केट के सर्वर को अपने कब्जे में ले लेगी। जैसे ही अल्फा बे बंद होगा, सभी यूजर्स हंसा मार्केट पर शिफ्ट हो जाएंगे। पुलिस ने अनुमान लगाया कि हंसा मार्केट का सर्वर नियंत्रण में होते ही, वे इन यूजर्स की सभी जानकारी इकट्ठा कर सकेंगे।
अंतिम कार्रवाई
5 जुलाई 2017 को पुलिस ने मिशन के आखिरी चरण को अंजाम देने का फैसला किया। एक महिला पुलिसकर्मी गाड़ी चलाकर एलेग्जेंडर के घर के पास गई और गार्ड से कहा कि उसने गलत टर्न ले लिया है। इसके बाद उसने जानबूझकर गाड़ी एलेग्जेंडर के गेट से टकरा दी। हंगामे की आवाज सुनकर एलेग्जेंडर बाहर आया और पुलिस की किस्मत अच्छी थी कि उसे अपने ऊपर रखी जा रही निगरानी का कुछ पता नहीं था। वह अपना कंप्यूटर बंद करना भूल गया जिसमें उसके गुनाहों का कच्चा चिट्ठा था। जैसे ही वह बाहर आया, पुलिस की टीम ने उसे चारों तरफ से घेर लिया। उसने अंदर भागने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने उसे दबोच लिया। उसके कंप्यूटर से पुलिस को सारे सुराग मिल गए और पता चला कि वह अभी भी डार्क वेब पर अपनी वेबसाइट चला रहा था। उसके अकाउंट से 192 करोड़ भी बरामद हुए। उसकी सारी प्रॉपर्टी, महंगी कारें, सब जब्त कर लिया गया और उसे जेल में डाल दिया गया। केस चलने से पहले ही उसने जेल में अपनी जान ले ली।
हंसा मार्केट का अंत
अल्फा बे के बंद होने के बाद उसके कई यूजर्स हंसा मार्केट पर शिफ्ट हुए, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि ऑपरेशन बेनेट के तहत हंसा मार्केट के सर्वर डच पुलिस के कब्जे में हैं। अगस्त 2017 में हंसा मार्केट के 4 लाख यूजर्स को वेबसाइट पर एक संदेश दिखाई दिया, “वेलकम टू द कंट्रोल बैंडिट। दिस मार्केटप्लेस एंडेड एज इट बिगन, अंडर द कंट्रोल ऑफ गवर्नमेंट।” हंसा मार्केट बंद हो चुका था। पुलिस ने कई दिनों तक उसे लाइव रखकर सभी यूजर्स की जानकारी भी इकट्ठा कर ली थी और हजारों को गिरफ्तार भी किया। कई यूजर्स को तो डार्क वेब और खुद पर इतना यकीन था कि उन्होंने हंसा मार्केट पर अपने नाम और एड्रेस भी शेयर कर दिए थे। इसकी मदद से पुलिस सभी को पकड़ने में कामयाब रही। जिस दिन हंसा मार्केट बंद हुआ, उसी दिन एफबीआई ने अल्फा बे के बंद होने की भी घोषणा कर दी। यह इतना बड़ा और सफल ऑपरेशन था कि पकड़े जाने के डर से डार्क वेब के कई प्लेटफार्म आने वाले दिनों में अपने आप बंद हो गए। कुछ प्लेटफॉर्म्स अभी भी जिंदा हैं, इसके अलावा रोज नए प्लेटफॉर्म डार्क वेब पर बनते और बंद होते रहते हैं। डार्क वेब के किंग पिन का ताज हालांकि अभी बेसिर है और इसके लिए नई लड़ाई चल रही है।