Sonam Wangchuk’s Hunger Strike: लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने का संघर्ष
पढ़ाई में फर्स्ट और इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद क्या आप नौकरी करते या अपना बिजनेस शुरू करते? शायद यही आम रास्ता होता है, लेकिन सोनम वांगचुक ने कुछ अलग ही रास्ता चुना. उन्होंने समाज की मुख्यधारा से हटकर पर्यावरण बचाने का बीड़ा उठा लिया. आज सोनम वांगचुक एक प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं. आइए जानते हैं उनकी प्रेरणादायक कहानी…
सोनम वांगचुक, भारतीय Engineer, Entrepreneur, और Teacher हैं। उन्होंने लद्दाख के सोनम वांगचुक, भारतीय Engineer, Entrepreneur, और Teacher हैं। उन्होंने लद्दाख के उत्थान के क्षेत्र में अपने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
जानिए सोनम वांगचुक की कहानी जो पर्यावरण को बचाने की राह दिखाती है!
सोनम वांगचुक 1966 में लद्दाख के, लेह जिले के छोटे से उले गांव में जन्मे थे। उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई खानपुर स्कूल, दिल्ली में पूरी की और फिर पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने गाँव लद्दाख वापस आकर अपना Startup शुरू किया। उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (NIT) से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. मगर, पढ़ाई कटे करते उन्हें ये एहसास हुआ कि समाज में सुधर की जरुरत है। उन्होंने पाया कि विकास के नाम पर हम पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं.
इंजीनियरिंग छोड़ पर्यावरण बचाने निकले सोनम वांगचुक, जानिए उनकी कहानी जो पर्यावरण को बचाने की राह दिखाती है!
यहीं से सोनम वांगचुक के मन में पर्यावरण बचाने का मन हुआ। उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर लद्दाख में एक स्कूल की शुरुआत की। ये कोई साधारण स्कूल नहीं था, बल्कि एक ऐसा स्कूल था जो बच्चों को पर्यावरण संरक्षण के बारे में शिक्षा देता है।
वांगचुक का सबसे महत्वपूर्ण कार्य “Ice Stoop” परियोजना है, जिसका मुख्य उद्देश्य लद्दाख के जल संकट को खत्म करना है। इस परियोजना में, बर्फ को पिघलाकर बनाये गए बड़े गोले बर्फ के रूप में जाने जाते हैं जिसे आर्टिफिशियल ग्लेशियर भी कहते हैं, जो फसलों और ग्रामीण जीवन के लिए जल इकठ्ठा करते हैं।
सोनम वांगचुक के अन्य कार्य लद्दाख के छात्रों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में सुधार, और क्षेत्रीय विकास के लिए नई और सुस्त स्वरूपों की खोज है। उन्होंने ‘स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख’ (SECMOL) नामक ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना की जो लद्दाख के क्षेत्र में शिक्षा के परिवर्तन लाने के लिए कार्यरत है।
सोनम वांगचुक की शिक्षा प्रणाली बिल्कुल अलग थी. वे किताबों के ज्ञान से ज्यादा बच्चों को Nature के करीब ले जाते थे. वह उन्हें हिमालय की वादियों में घुमाते थे, पर्यावरण की समस्याओं को खुद देखने सुलझाने का मौका देते थे.
सोनम वांगचुक की मेंहनत रंग लाईं और उनका स्कूल दुनियाभर में Famous हुआ, आज सोनम वांगचुक पर्यावरण बचाने के लिए दुनियाभर में प्रेरणा देते हैं, उन्हें कई सम्मान भी मिले।
सोनम वांगचुक के योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चूका है गया , जिसमें 2016 में rolex awards for enterprise और 2018 में Ramon Magsaysay Award शामिल हैं। उन्हें लद्दाख और भारतीय समाज में उनके योगदान के लिए बहुत सारी प्रशंसा मिली है।
Sonam Wangchuk’s Hunger Strike: लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने का संघर्ष
15 दिन से जारी है अनशन, मांगी गई राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा
प्रसिद्ध शिक्षाविद और पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक पिछले 15 दिनों से लद्दाख में भूख हड़ताल पर हैं. उनकी मांग है कि लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश से निकालकर पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए और उसे संविधान की छठी अनुसूची के तहत विशेष दर्जा मिले.
कड़ाके की ठंड में संघर्ष (Struggle in Brutal Cold)
लद्दाख में इस वक्त कड़ाके की ठंड पड़ रही है, बावजूद इसके सोनम वांगचुक अपने संघर्ष से पीछे नहीं हट रहे हैं. उनके समर्थन में लद्दाख के विभिन्न गांवों के लोग भी प्रदर्शन कर रहे हैं
क्या हैं छठी अनुसूची के फायदे? (Benefits of Sixth Schedule)
संविधान की छठी अनुसूची पूर्वोत्तर के कई राज्यों को विशेष दर्जा देती है. इस दर्जा के तहत इन राज्यों को अपने सांस्कृतिक और सामाजिक सरोकारों की रक्षा करने का अधिकार मिलता है. सोनम वांगचुक का मानना है कि लद्दाख की संस्कृति और आदिवासी समुदायों के हितों की रक्षा के लिए यह दर्जा जरूरी है.
क्या सरकार मानेगी मांग? (Will the Government Heed the Demands?)
यह देखना अभी बाकी है कि सरकार सोनम वांगचुक की मांगों पर क्या रुख अपनाती है. उनकी भूख हड़ताल देशभर में सुर्खियों में है और कई संगठन उनके समर्थन में आ चुके हैं.
Sonam Wangchuk’s Hunger Strike: लद्दाख को राज्य का दर्जा दिलाने का संघर्ष