Mangla Prasad Paritoshik Puraskar Winners

Mangla Prasad Paritoshik Puraskar Winners: जानिए किसने जीता ये प्रतिष्ठित सम्मान!

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Mangla Prasad Paritoshik Puraskar: जानिए किसने जीता ये प्रतिष्ठित सम्मान!

मंगलाप्रसाद पारितोषिक का इतिहास

मंगलाप्रसाद पारितोषिक एक प्रमुख साहित्यिक पुरस्कार है, जो हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा साहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान देने वाले व्यक्तियों को प्रदान किया जाता है। इसकी स्थापना 1923 में पुरुषोत्तम दास टंडन ने की थी। यह पुरस्कार उन लेखकों को सम्मानित करता है जिन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है और इसे नई ऊचाइयों तक पहुंचाया है।

पुरस्कार की स्थापना और उद्देश्य

पटना में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन के दौरान यह प्रस्तावित किया गया कि एक कोष की स्थापना की जाए, जिसके ब्याज से हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान देने वाले साहित्यकारों को आर्थिक सहायता प्रदान की जा सके। हालांकि पटना में इस विचार पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई, लेकिन कोलकाता में पुरुषोत्तमदास टंडन और पुरुषोत्तम राव ने इस पर चर्चा की। इसके बाद, गोकुलचंद जी ने अपने भाई मंगलाप्रसाद जी की स्मृति में 40,000 रुपये दान किए और एक ट्रस्ट की स्थापना की। इस ट्रस्ट का कार्य यह निर्धारित करना था कि तीन निर्णायक चयन करें और सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ को पारितोषिक प्रदान करें।

मंगला प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार की प्रक्रिया

प्रथम बार, 1923 में कानपुर में आयोजित तेरहवें हिंदी साहित्य सम्मेलन में पुरुषोत्तमदास टंडन की अध्यक्षता में पुरस्कार प्रदान किया गया। पुरस्कार की चयन प्रक्रिया में तीन निर्णायक चुने गए: आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, चन्द्रशेखर शास्त्री, और अम्बिकाप्रसाद वाजपेयी। चूंकि इनकी चयनित ग्रंथों पर एकमत नहीं हो पाया, नए निर्णायक नियुक्त किए गए: श्री श्रीधर पाठक, रामदास गौड़, और वियोगी हरि। इन्होंने श्री पद्मसिंह शर्मा को ‘बिहारी सतसई’ पर उनके संजीवन भाष्य के लिए पुरस्कार प्रदान करने का निर्णय लिया।

मंगला प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार की स्थापना और उद्देश्य

  • स्थापना: 1923 में पुरुषोत्तम दास टंडन द्वारा
  • उद्देश्य: हिंदी साहित्य में उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करना और साहित्यकारों को आर्थिक सहायता प्रदान करना
  • कोष की स्थापना: गोकुलचंद जी द्वारा मंगलाप्रसाद जी की स्मृति में 40,000 रुपये का दान
  • निर्णायक प्रक्रिया: तीन निर्णायक चयनित और ग्रंथ पर पुरस्कार देने का निर्णय

मंगला प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार की प्रक्रिया

  • प्रथम पुरस्कार (1923): कानपुर में आयोजित तेरहवें हिंदी साहित्य सम्मेलन में पुरुषोत्तमदास टंडन की अध्यक्षता में प्रदान किया गया
  • निर्णायक: पहले आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी, चन्द्रशेखर शास्त्री, और अम्बिकाप्रसाद वाजपेयी, फिर श्री श्रीधर पाठक, रामदास गौड़, और वियोगी हरि
  • प्रथम पुरस्कार प्राप्तकर्ता: पद्मसिंह शर्मा को ‘बिहारी सतसई’ पर संजीवन भाष्य के लिए

Questions: जयशंकर प्रसाद की किस रचना पर मंगला परितोषिक दिया गया​?

जयशंकर प्रसाद की कृति ‘कामायनी’ को मंगलाप्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया। जयशंकर प्रसाद, हिंदी के प्रसिद्ध कवि, कहानीकार, नाटककार, उपन्यासकार, और निबंधकार थे। उनकी रचना ‘कामायनी’ हिंदी साहित्य की सर्वश्रेष्ठ कृतियों में मानी जाती है। वे छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक थे और उनकी कृतियों ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी।

मंगला प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार प्रसिद्ध प्राप्तकर्ता

महादेवी वर्मा, मैथिलीशरण गुप्त और अन्य सम्मानित साहित्यकार

मंगलाप्रसाद पारितोषिक प्राप्त करने वाले साहित्यकारों में महादेवी वर्मा, मैथिलीशरण गुप्त, और विद्यानिवास मिश्र जैसे प्रतिष्ठित नाम शामिल हैं। इन साहित्यकारों ने अपने लेखन के माध्यम से हिन्दी साहित्य को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया है।

Mangla Prasad Paritoshik Puraskar Winners List

मंगला प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार विजेताओं की पूरी सूची

  • 1933 ई.: पंडित सियाराम शरण गुप्त – “बिहारी सतसई पर संजीवन भाष्य”
  • 1934 ई.: गौरीशंकर हीराचन्द ओझा – “भारतीय ग्रामीण लिपिमाला”
  • 1935 ई.: नन्द किशोर उपाध्याय – “मनोविज्ञान”
  • 1936 ई.: त्रिलोचन शास्त्री – “हमारे शरीर की रचना”
  • 1937 ई.: वियोगी हरि – “वीर सतसई”
  • 1938 ई.: गोपीनाथ उपाध्याय – “आस्तिकवाद”
  • 1939 ई.: गोविन्द प्रसाद – “फोटोमैनुअल”
  • 1940 ई.: डॉ. मुकुन्ददास – “स्वास्थ्य विज्ञान”
  • 1941 ई.: जयचन्द्र विद्यालंकार – “भारतीय इतिहास की रूपरेखा”
  • 1942 ई.: श्रीमती चन्द्रवती लखटकिया – “शिक्षा-मनोविज्ञान”
  • 1943 ई.: रामदास गौड़ – “विज्ञान हस्तमाला”
  • 1944 ई.: अयोध्यासिंह उपाध्याय – “प्रियप्रवास”
  • 1945 ई.: मैथिली शरण गुप्त – “साकेत”
  • 1946 ई.: जयशंकर प्रसाद – “कामायनी”
  • 1947 ई.: आचार्य रामचन्द्र शुक्ल – “चिन्तामणि”
  • 1948 ई.: बृजवासी लाल उपाध्याय – “गुप्त साम्राज्य का इतिहास”
  • 1949 ई.: डॉ. सम्पूर्णानन्द – “समाजवाद”
  • 1950 ई.: बलदेव उपाध्याय – “भारतीय दर्शन”
  • 1951 ई.: महादेव प्रसाद श्रीवास्तव – “सूर्य सिद्धान्त का विज्ञान”
  • 1952 ई.: शंकरलाल गुप्त – “ध्यानयोग”
  • 1953 ई.: महादेवी वर्मा – “यामा कविता संग्रह”
  • 1954 ई.: हजारीप्रसाद द्विवेदी – “कबीर”
  • 1955 ई.: डॉ. रघुवीर सिंह – “मालवा में युगान्तर”
  • 1956 ई.: कमलापति त्रिपाठी – “गाँधी और मानवता”
  • 1957 ई.: डॉ. सम्पूर्णानन्द – “चिकित्सा”
  • 1958 ई.: श्री चन्द्रवती सक्सेना – “संक्षिप्त गो-पालन”
  • 1959 ई.: डॉ. दीनदयाल गुप्त – “अखण्ड भारत के नामी कवि”
  • 1960 ई.: डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल – “हरिवंश”
  • 1961 ई.: सत्यदेव सिधान्तलघुसंग्रह – “समाजदर्शन का इतिहास”
  • 1962 ई.: उदयशंकर शास्त्री – “साँख्यदर्शन का इतिहास”
  • 1963 ई.: श्री बंशीधर गुप्ता – “बच्चन की आत्मकथा”
  • 1964 ई.: परशुराम चतुर्वेदी – “उत्तर भारत की संतपरम्परा”
  • 1965 ई.: रामगोपाल शर्मा – “प्राचीन भारतीय मिट्टी के बर्तन”
  • 1966 ई.: डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल – “वेदवेद्य”
  • 1967 ई.: श्री रामचन्द्र शुक्ल – “निबन्ध रस मीमांसा”
  • 1968 ई.: गोविन्दप्रसाद शुक्ल – “श्रीकृष्ण की भागवत गीता”
  • 1969 ई.: डॉ. विश्वनाथ झा – “भारत की विदेश नीति”
  • 1970 ई.: श्री लल्लू प्रसाद तिवारी – “रामायण और लोककथा”
  • 1971 ई.: श्री रामनाथ त्रिपाठी – “कालीदास के अभिज्ञान शाकुन्तलम पर आलोचनात्मक अध्ययन”
  • 1972 ई.: डॉ. विद्या निवास मिश्र – “रास साहित्य और रामायण की आलोचना”
  • 1973 ई.: श्री मिश्रिलाल ‘मिश्र’ – “रामचन्द्र का गुप्तनामक युद्ध”
  • 1974 ई.: श्री श्रीलाल वर्मा – “मंगलपाण्डेय”
  • 1975 ई.: डॉ. रामावतार तिवारी – “परिचय और विकास”
  • 1976 ई.: श्री बंसीलाल गुप्त – “भारत का संविधान”
  • 1977 ई.: डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल – “गुप्तकालीन भारत का समाज”
  • 1978 ई.: श्री गोविन्दप्रसाद शर्मा – “प्राचीन भारतीय मनीषा”
  • 1979 ई.: श्री वासुदेव उपाध्याय – “आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी”
  • 1980 ई.: श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी – “सम्पूर्णानन्द का साहित्य”
  • 1981 ई.: श्रीमती चन्द्रकला सिंह – “संस्कृत साहित्य में नारी”
  • 1982 ई.: श्री रामलाल सिंह – “निबन्ध और नाटक”
  • 1983 ई.: श्री सत्यप्रकाश मिश्रा – “उपन्यास और सामाजिक यथार्थ”
  • 1984 ई.: श्री राधाकृष्ण रत्नाकर – “भाषाशास्त्र”
  • 1985 ई.: डॉ. भोलानाथ तिवारी – “भारतीय नृत्यकला”
  • 1986 ई.: श्री राधेश्याम झा – “संस्कृत काव्य में संस्कृति”
  • 1987 ई.: श्री नरेश मेहता – “एक भारतीय आत्मा”
  • 1988 ई.: डॉ. रामावतार शर्मा – “हिन्दी साहित्य का इतिहास”
  • 1989 ई.: श्री काशीनाथ सिंह – “कविता और परिवेश”
  • 1990 ई.: श्री लल्लू प्रसाद पाण्डेय – “हिन्दी उपन्यास: समाज और संस्कृति”
  • 1991 ई.: डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी – “कविता के आयाम”
  • 1992 ई.: श्री विश्वनाथ त्रिपाठी – “कविता के आयाम”
  • 1993 ई.: श्री प्रभाष जोशी – “हिन्दी पत्रकारिता और जनसंचार”
  • 1994 ई.: श्री योगेश्वर तिवारी – “गांधी और आधुनिक भारत”
  • 1995 ई.: श्री कृष्ण कुमार – “भारतीय संस्कृति और संचार”
  • 1996 ई.: श्री अली अकबर खान – “राग”
  • 1997 ई.: श्री बाबूलाल पाणडेय – “हिन्दी साहित्य की परंपरा और प्रवृत्तियाँ”
  • 1998 ई.: श्री बालकृष्ण शर्मा – “सामान्य ज्ञान और उसकी शिक्षा”
  • 1999 ई.: श्री रामस्वरूप दीक्षित – “हिन्दी साहित्य का इतिहास”
  • 2000 ई.: श्री विद्याभूषण मिश्र – “भारतीय साहित्य का इतिहास”
  • 2001 ई.: श्री मुरारीलाल गुप्त – “कहानी और कविता”
  • 2002 ई.: श्री गोविन्दप्रसाद शर्मा – “रामायण और महाभारत”
  • 2003 ई.: श्री सत्यप्रकाश मिश्रा – “उपन्यास और नाटक”
  • 2004 ई.: श्री रामानन्द त्रिपाठी – “काव्यशास्त्र और आलोचना”
  • 2005 ई.: श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ – “राम की शक्तिपूजा”
  • 2006 ई.: श्री विश्वनाथ प्रसाद मिश्र – “समकालीन भारतीय साहित्य”
  • 2007 ई.: श्री प्रभाशंकर मिश्र – “कविता और आलोचना”
  • 2008 ई.: किसी को नहीं दिया गया, Note: 2007 से यह पारितोषिक बंद है।

निष्कर्ष

हिंदी साहित्य के सभी पुरस्कार List pdf download

  1. Vyas samman (व्यास सम्मान)
  2. Shalaka Samman (श्लाका पुरस्कार)
  3. Gyanpeeth Award (ज्ञानपीठ पुरस्कार)
  4. Saraswati samman (सरस्वती सम्मान)
  5. Murtidevi puraskar (मूर्तिदेवी पुरस्कार)
  6. Bal sahitya puraskar (बाल साहित्य पुरस्कार)
  7. Bharat Bharti Samman (भारत भारती सम्मान)

मंगलाप्रसाद पारितोषिक ने हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह पुरस्कार न केवल साहित्यकारों को प्रोत्साहित करता है, बल्कि हिन्दी साहित्य के विकास में भी अहम योगदान देता है।

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