मदरसा बोर्ड कानून खत्म! हाई कोर्ट ने किया ये बड़ा फैसला
यूपी में मदरसों पर गिरी गाज! हाई कोर्ट ने किया ये बड़ा फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने 22 मार्च को एक बड़ा फैसला सुनाया कोर्ट ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट को असंवैधानिक ठहरा दिया शुक्रवार को केस में सुनवाई करते हुए जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने फैसला दिया इसके साथ ही कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया कि मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को अन्य स्कूलों में ट्रांसफर किया जाए
पूरा मामला क्या है विस्तार से आपको बताते हैं अंशुमान सिंह राठौड़ नाम के एक व्यक्ति ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के सामने रिट पिटीशन दायर की थी याचिका में अंशुमान सिंह राठौड़ ने कहा था कि उत्तरप्रदेश सरकार का यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 असंवैधानिक है साथ ही याचिका में यह भी कहा गया था कि इस एक्ट से संविधान के सेकुलरिज्म प्रिंसिपल का भी उल्लंघन होता है।
राठौड़ की याचिका में मदरसों का मैनेजमेंट केंद्र सरकार और राज्य सरकार के माइनॉरिटी वेलफेयर डिपार्टमेंट से होने पर भी ऑब्जेक्शन उठाए गए थे इस केस पर जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की लखनऊ पीठ सुनवाई कर रही थी, कोर्ट ने सुनवाई कर इस पर 8 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था फिर 22 मार्च शुक्रवार को यह फैसला सुनाया गया।
इस मामले में याचिकाकर्ता अंशुमान सिंह राठौड़ की तरफ से आदित्य कुमार तिवारी और गुलाम मोहम्मद कामिल जिरह कर रहे थे जबकि केंद्र सरकार और अन्य रेस्पॉन्डेंट्स की ओर से अफजल अहमद सिद्दीकी, अमरेंद्र नाथ त्रिपाठी, आनंद दिवेदी और सैयद हुसैन के साथ-साथ कुछ अन्य वकील भी थे।
कोर्ट ने इस केस के साथ में पांच और अन्य केस भी क्लब किए थे जिनका फैसला इसी फैसले के साथ में सुनाया गया है उन केस में याचिका करता थे मोहम्मद जावेद सिराजुल हक अब्दुल अजज राजोल मुस्तफा और मदरसा जमीयत उली हत एजुकेशन सोसाइटी सुनवाई के दौरान ही हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार से मदरसा संचालित करने को लेकर काफी पूछताछ की थी कोर्ट ने सरकारों से पूछा था कि मदरसा बोर्ड शिक्षा विभाग के बदले माइनॉरिटी विभाग से चलाने का क्या तुक है।
इसके अलावा कोर्ट ने मनमाने ढंग से फैसला लेने की भी आशंका जताई थी और शैक्षणिक संस्थानों की मैनेजमेंट में पारदर्शिता की अहमियत पर जोर दिया था मगर सरकार की ओर से प्रस्तुत वकीलों की बहस से बेंच संतुष्ट नहीं हुई और आखिर में फैसला याचिकाकर्ता के पक्ष में आ गया 86 पेज के अपने इस विस्तृत फैसले में कोर्ट ने कहा कि यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 असंवैधानिक है साथ ही कोर्ट निशुल्क और अनिवार्य बालशिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के भी कुछ प्रोविजंस को असंवैधानिक करार दिया है।
मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों को अन्य स्कूलों में ट्रांसफर किया जाए
इसके अलावा कोर्ट ने मदरसे में पढ़ रहे छात्रों को अन्य सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर करने का भी निर्देश दिया है फैसले के 100वें पैराग्राफ में कोर्ट ने कहा क्योंकि उत्तर प्रदेश में एक बड़ी संख्या में मदरसे और उनमें पढ़ने वाले स्टूडेंट्स इसलिए राज्य सरकार को ये निर्देश दिया जाता है कि इन छात्रों को रेगुलर मान्यता प्राप्त स्कूलों में ट्रांसफर करवाया जाए अगर इसके लिए स्कूलों में अतिरिक्त सीटें बढ़ानी पड़े या नए स्कूल भी खोलने पड़े तो राज्य सरकार को यह करना होगा इसके साथ ही राज्य सरकार को यह भी सुनिश्चित करना है कि 6 साल से 14 साल की उम्र वाले बच्चे मान्यता प्राप्त संस्थानों में एडमिशन से वंचित ना रह जाएं।
कुछ महीनों पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के इस्लामिक एजुकेशन संस्थानों का सर्वे करने का निर्णय लिया था सर्वे के लिए अक्टूबर 2023 में सरकार ने एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम भी गठित की थी मगर इसके कुछ ही महीनों बाद हाई कोर्ट की रूलिंग आ गई यह एक्ट मदरसा एजुकेशन के लिए 2004 में यूपी गवर्नमेंट लाई थी एक्ट के सेक्शन 2 ऑफ एच के मुताबिक मदरसा एजुकेशन का मतलब होता है अरबी उर्दू फारसी इस्लामिक स्टडीज तिब लॉजिक और दर्शन की पढ़ाई इसके अलावा समय-समय पर बोर्ड उसमें शिक्षा की और भी ब्रांचेस को इंक्लूड कर सकता था।
एक्ट के सेक्शन तीन में मदरसा बोर्ड कैसे होगा इसकी कंपोजिशन बताई गई थी खैर अब यह एक्ट और इसका बोर्ड असंवैधानिक ठहरा दिया गया है लेकिन सरकार के पास अभी भी सुप्रीम कोर्ट का रुक करने का ऑप्शन उपलब्ध है लेकिन जो सरकार इसे लेकर पहले ही सर्वे करवाने का निर्णय कर चुकी थी वो क्या सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगी यह सोचने वाली बात है।