जेनी एर्पेनबेक की ‘कैरोस’ ने जीता अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2024
जेनी एर्पेनबेक की ‘कैरोस’ को अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार
हाल ही में, जर्मन लेखिका जेनी एर्पेनबेक द्वारा लिखित और माइकल हॉफमैन द्वारा अनुवादित पुस्तक ‘कैरोस’ ने 2024 का अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीत लिया है। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के तहत, ‘कैरोस’ को सर्वश्रेष्ठ अंग्रेजी अनुवादित कथा साहित्य के रूप में सम्मानित किया गया है।
‘कैरोस’ का कथानक और पृष्ठभूमि
‘कैरोस’ पुस्तक को मूल रूप से जर्मन भाषा में लिखा गया था और इसका अंग्रेजी अनुवाद माइकल हॉफमैन द्वारा किया गया है। यह पुस्तक 1980 के दशक के पूर्वी बर्लिन की पृष्ठभूमि में स्थापित है और 19 वर्ष की एक युवती और 50 वर्ष की आयु के एक विवाहित पुरुष के बीच की जटिल प्रेम कहानी पर आधारित है। यह प्रेम कहानी उस युग के उथल-पुथल भरे समय का प्रतीक है, जब बर्लिन दीवार का पतन हो रहा था और समाज में बड़े बदलाव हो रहे थे।
अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के बारे में
पुरस्कार की शुरुआत और उद्देश्य
अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार प्रतिवर्ष विश्व भर से अंग्रेजी में अनुवादित सर्वश्रेष्ठ कथा साहित्य के लिए दिया जाता है। इस पुरस्कार की शुरुआत वर्ष 2005 में मैन बुकर अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार के रूप में हुई थी। प्रारंभ में यह किसी रचना के लिए दिया जाने वाला द्विवार्षिक पुरस्कार था, और इसमें कोई शर्त नहीं थी कि रचना अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य भाषा में लिखी होनी चाहिए।
इस पुरस्कार का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में गुणवत्तापूर्ण उपन्यासों को पढ़ने के लिए और अधिक प्रोत्साहित करना है। यह पुरस्कार अनुवादकों के महत्वपूर्ण कार्य का सम्मान करता है और साहित्य में विविधता और अनुवादित कार्यों के महत्व को मान्यता देता है।
पुरस्कार की पात्रता
इस पुरस्कार के लिए पात्रता के मानदंड भी उल्लेखनीय हैं। अंग्रेजी में प्रकाशित या आम तौर पर अंग्रेजी अनुवाद में उपलब्ध रचना के लिए किसी भी राष्ट्रीयता का लेखक इसके लिए पात्र होता है।
पुरस्कार राशि और सम्मान
पुरस्कार में 50,000 पाउंड की राशि को लेखक और अनुवादक के बीच विभाजित करके प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त, चयनित लेखकों और अनुवादकों में से प्रत्येक को 2,500 पाउंड प्रदान किए जाते हैं। यह पुरस्कार अनुवादकों के कार्य के महत्व को रेखांकित करता है और उनके योगदान को सराहता है।
बुकर पुरस्कार से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार और इसके समकक्ष बुकर पुरस्कार के इतिहास में कई भारतीय मूल के लेखकों ने भी महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया है।
भारतीय मूल के पहले विजेता
बुकर पुरस्कार जीतने वाले भारतीय मूल के पहले व्यक्ति वीएस नायपॉल थे, जिनकी रचना ‘इन ए फ्री स्टेट’ ने यह सम्मान प्राप्त किया था।
अरविंद अडिगा की सफलता
वर्ष 2008 में अरविंद अडिगा को उनकी रचना ‘द व्हाइट टाइगर’ के लिए बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
गीतांजलि श्री का ‘रेत-समाधि’
वर्ष 2022 में गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत-समाधि’ को अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए चुना गया था। इस उपन्यास का अंग्रेजी अनुवाद डेजी रॉकवेल द्वारा ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ के नाम से किया गया था, जिसे व्यापक प्रशंसा मिली थी।
अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के ‘कैरोस’ की विशेषताएँ और महत्व
जेनी एर्पेनबेक की ‘कैरोस’ केवल एक प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि यह उस समय के राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों का भी चित्रण करती है।
प्रेम और उथल-पुथल
पुस्तक में दिखाया गया है कि किस प्रकार उनका प्रेम उस युग के उथल-पुथल भरे समय का प्रतीक था। यह कहानी व्यक्तिगत और सामूहिक अनुभवों के बीच के संघर्ष को उजागर करती है, जिसमें व्यक्तिगत भावनाएँ और व्यापक समाज के परिवर्तन एक-दूसरे से टकराते हैं।
अनुवाद का महत्व
माइकल हॉफमैन द्वारा अनुवादित इस पुस्तक ने अंग्रेजी भाषी पाठकों के लिए इस जटिल और संवेदनशील कहानी को पहुँचाया है। हॉफमैन का अनुवाद न केवल मूल पाठ की भावना और गहराई को बनाए रखता है, बल्कि इसे नए संदर्भ में प्रस्तुत भी करता है।
निष्कर्ष
जेनी एर्पेनबेक की ‘कैरोस’ ने 2024 के अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार को जीतकर एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। यह पुरस्कार न केवल उत्कृष्ट साहित्यिक कार्यों को मान्यता देता है, बल्कि अनुवादकों के महत्वपूर्ण योगदान को भी सराहता है। ‘कैरोस’ की सफलता से यह साबित होता है कि गुणवत्ता साहित्य और अनुवाद के माध्यम से विश्व साहित्य में नए आयाम जोड़े जा सकते हैं।