GI Tag: भारत के अलग-अलग राज्यों में पारंपरिक शिल्प, कृषि उत्पाद और कला की अनेक विधाएं हैं, जो सालों से हमारी संस्कृति की पहचान रही हैं। इन्हीं पारंपरिक चीजों को कानूनी मान्यता देने और उनकी विशिष्टता को बनाए रखने के लिए दिया जाता है GI टैग — यानी Geographical Indication Tag।
2025 में भारत के कई नए उत्पादों को GI टैग मिला है, जो न सिर्फ उनके गुणवत्ता मानक को दर्शाता है, बल्कि उन क्षेत्रों की आर्थिक और सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करता है।
What is a GI Tag?
भारत के अलग-अलग राज्यों में पारंपरिक शिल्प, कृषि उत्पाद और कला की अनेक विधाएं हैं, जो सालों से हमारी संस्कृति की पहचान रही हैं। इन्हीं पारंपरिक चीजों को कानूनी मान्यता देने और उनकी विशिष्टता को बनाए रखने के लिए दिया जाता है GI टैग — यानी Geographical Indication Tag।
2025 में भारत के कई नए उत्पादों को GI टैग मिला है, जो न सिर्फ उनके गुणवत्ता मानक को दर्शाता है, बल्कि उन क्षेत्रों की आर्थिक और सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करता है।
GI टैग भारत में कब लागू हुआ?
- भारत में “Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act” संसद में 1999 में पास हुआ था।
- यह कानून 15 सितंबर 2003 से लागू हुआ।
- एक GI टैग की वैधता 10 वर्षों के लिए होती है।
GI टैग का पंजीकरण भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) द्वारा किया जाता है।
GI टैग के फायदे क्या हैं?
- प्रामाणिकता की गारंटी: यह सुनिश्चित करता है कि कोई उत्पाद सिर्फ उसी इलाके में बनता है और उसकी गुणवत्ता तय मानकों पर आधारित है।
- सांस्कृतिक संरक्षण: GI टैग पारंपरिक हस्तशिल्प, कारीगरी और कृषि तकनीकों को संरक्षित करता है।
- रोज़गार और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: स्थानीय उत्पादों की मांग बढ़ने से शिल्पकारों और किसानों को सीधा लाभ होता है।
- अंतरराष्ट्रीय पहचान: GI टैग वाले उत्पादों की वैश्विक बाज़ार में अधिक मांग होती है, जिससे भारत को एक अलग पहचान मिलती है।
GI Tag 2025 Products List:-
वर्ष | उत्पाद | राज्य/स्थान | श्रेणी |
---|---|---|---|
2025 | कुम्भकोणम वेट्रिलाई (पान पत्ता) | तमिलनाडु (तंजावुर) | कृषि |
2025 | थोवलै मणिक्का माला (फूल माला) | तमिलनाडु (कन्याकुमारी) | हस्तशिल्प |
2025 | विलो बैट | जम्मू-कश्मीर | हस्तशिल्प |
2025 | शहद आई बनास | गुजरात | खाद्य/कृषि |
2025 | घरचोला साड़ी | गुजरात | वस्त्र |
2025 | रिंडिया (हैंडलूम उत्पाद) | मेघालय | वस्त्र |
2025 | माजुली मास्क | असम | हस्तशिल्प |
2025 | बोडो दोखना | असम | वस्त्र |
2025 | बोडो अरनई | असम | वस्त्र |
2025 | दूधनाथ चावल | उत्तर प्रदेश | कृषि |
2025 | गंगाथ घाट का पान | उत्तर प्रदेश | कृषि/खाद्य |
2025 | नागरी दुबराज चावल | छत्तीसगढ़ | कृषि |
2025 | बस्तर डोकरा | छत्तीसगढ़ | हस्तशिल्प |
2025 | खमरी बकरी बाँसुरी | अरुणाचल प्रदेश | हस्तशिल्प |
2025 | काला नुनिया चावल | पश्चिम बंगाल | कृषि |
2025 | कदोदोंग हल्दी | मेघालय | कृषि |
2025 | आंड्रोनी मिश्मी वस्त्र | अरुणाचल प्रदेश | वस्त्र |
2025 | फेणी | गोवा | खाद्य/पेय |
2025 | अगसेची वैगिमी (बैंगन) | गोवा | कृषि |
2025 | करेन मुसली चावल | अंडमान-निकोबार | कृषि |
GI Tag 2024-2023 Products List
वर्ष | उत्पाद का नाम | राज्य |
---|---|---|
2024 | पश्मीना ऊन | लद्दाख |
2024 | अजरख प्रिंट | गुजरात |
2024 | सांझी क्राफ्ट | मथुरा (उत्तर प्रदेश) |
2024 | जनजातीय पोशाक 'रिगनाई पचरा' | त्रिपुरा |
2024 | बांसुरी | पीलीभीत (उत्तर प्रदेश) |
2024 | गोंड पेंटिंग | मध्य प्रदेश |
2024 | तिरंगा बर्फी | वाराणसी (उत्तर प्रदेश) |
2024 | मांजुलि मुखौटे एवं पांडुलिपि पेंटिंग | असम |
2024 | आदिवासी पोशाक 'रिसा' | त्रिपुरा |
2024 | सिल्वर फिलिग्री (तारकशी) | ओडिशा |
2024 | ढेंकनाल माजी (मिठाई) | ओडिशा |
2024 | मोनपा हैंडमेड कागज | अरुणाचल प्रदेश |
2024 | वांचो शिल्प | अरुणाचल प्रदेश |
2024 | आदि अपोंग, गैलो वस्त्र, मारूआ अपो | अरुणाचल प्रदेश |
2024 | न्यीशी वस्त्र, अंगन्यात मिलेट | अरुणाचल प्रदेश |
2024 | कादियाल, तांगेल, गारद साड़ी | पश्चिम बंगाल |
2024 | कलोनुनिया चावल | पश्चिम बंगाल |
2024 | सी बकथॉर्न फल | लद्दाख |
2024 | कच्ची खरीक (खजूर) | गुजरात |
2023 | अमरोहा ढोलक | उत्तर प्रदेश |
2023 | संभल हॉर्न क्राफ्ट | उत्तर प्रदेश |
2023 | जलेसर धातु शिल्प | उत्तर प्रदेश |
2023 | गंगा घाट का पान | उत्तर प्रदेश |
2023 | अवध की चिकनकारी | उत्तर प्रदेश |
2023 | कुम्हार खादी | उत्तर प्रदेश |
2023 | याक चुरपी | अरुणाचल प्रदेश |
2023 | खामती चावल | अरुणाचल प्रदेश |
2023 | तांगसा वस्त्र | अरुणाचल प्रदेश |
2023 | काजू, बेबिन्का, मानकुराद आम | गोवा |
2023 | सलेम सागो | तमिलनाडु |
2023 | कन्याकुमारी मैटी केला | तमिलनाडु |
2023 | ऊटी वर्की, जदेरी नामकट्टी | तमिलनाडु |
2023 | चेदीबूटा साड़ी, नेगामम साड़ी | तमिलनाडु |
2023 | मायलाडी पत्थर नक्काशी | तमिलनाडु |
2023 | बीकानेर की उस्ता कला शिल्प | राजस्थान |
2023 | उदयपुर कोफ्तगिरी धातु शिल्प | राजस्थान |
2023 | जोधपुर की बंदेज कला | राजस्थान |
2023 | लकड़ोंग हल्दी | मेघालय |
2023 | लारनाई मिट्टी के बर्तन | मेघालय |
2023 | गारो डकमांडा, गारो चुबिची | मेघालय |
2023 | केन्द्रपाड़ा रसबली मिठाई | ओडिशा |
2023 | रायगड़ा शॉल | ओडिशा |
2023 | कोरापुट काला जीरा चावल | ओडिशा |
GI टैग Q फॉर Exam
- भारत में पहला जीआई टैग, वर्ष 2004 को दार्जिलिंग चाय के लिए दिया गया था।
- जुलाई 2025 तक कौन सा राज्य सर्वाधिक जीआई टैग उत्पादों के साथ पहले स्थान पर है? – उत्तर प्रदेश। ( 77 भौगोलिक संकेतक टैग, जिसने तमिलनाडु को पीछे छोड़ दिया, वाराणसी के काशी क्षेत्र को 32 जीआई टैग उत्पाद प्राप्त है)
- सबसे अधिक GI टैग एक दिन में पाने वाला राज्य: उत्तराखंड (18 GI टैग)
Conclusion:
GI टैग न केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हैं, बल्कि उनकी विशिष्टता को भी प्रमाणित करते हैं।