Electoral Bonds Scams: सुप्रीम कोर्ट का चुनावी बांड पर ऐतिहासिक फैसला
चुनाव आयोग ने 14 मार्च को इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दी है। यह डेटा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा 12 मार्च को चुनाव आयोग को सौंपा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 15 मार्च तक यह जानकारी सार्वजनिक करने का निर्देश दिया था। 15 फरवरी 2024 को, सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया।उल्लेखनीय है कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 15 फरवरी को दिए ऐतिहासिक फैसले में केंद्र सरकार की चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक बताते हुए खत्म कर दिया, चुनाव आयोग को चंदादाताओं, उनके द्वारा दिए गए चंदे और चंदा पाने वालों का ब्योरा उजागर करने का निर्देश दिया था। वहीं, आपको यह बता दें कि इससे पहले भारतीय स्टेट बैंक ने सुप्रीम कोर्ट से चुनावी बांड का ब्योरा सार्वजनिक करने के लिए 30 जून तक का समय मांगा था। जिस आवेदन को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।
- 2017 में शुरू की गई चुनावी बांड योजना समाप्त हो गई है।
- चुनाव आयोग को चंदादाताओं, उनके द्वारा दिए गए चंदे और चंदा पाने वालों का ब्योरा सार्वजनिक करना होगा।
दानदाताओं और राजनीतिक दलों का खुलासा
चुनाव आयोग द्वारा जारी डेटा में दो सूचियां हैं। पहली सूची में दानदाताओं के नाम, उनके द्वारा खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की संख्या और राशि का उल्लेख है। दूसरी सूची में राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त इलेक्टोरल बॉन्ड की संख्या और राशि का उल्लेख है।
जाने आपकी पसंदीदा पार्टी को इन कंपनियों ने दिया फंड
इस जानकारी को दो हिस्सों में जारी किया गया है। पहली सूची: इस सूची में 336 पन्नों में उन कंपनियों के नाम हैं जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदा है और उसकी राशि की जानकारी भी दी गई है। दूसरी सूची:इस सूची में 426 पन्नों में राजनीतिक दलों के नाम हैं और उन्होंने कब कितनी राशि के इलेक्टोरल बॉन्ड कैश कराए उसकी विस्तृत जानकारी है।
चुनावी बॉन्ड इनकैशमेंट की सूची के मुख्य बिंदु:
चुनावी बॉन्ड: किन पार्टियों की झोली भरी
- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा): ₹2,363 करोड़
- ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (TMC): ₹416 करोड़
- बीजू जनता दल (BJD): ₹328 करोड़
- अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (INC): ₹302 करोड़
- द्रविड़ मुनेत्र कषगम (DMK): ₹294 करोड़
- वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) –
Big names among Electoral Bond buyers
- फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज (लॉटरी मार्टिन): 1,368 करोड़ रुपये
- मेघा ग्रुप ऑफ कंपनीज: 1,186 करोड़ रुपये
- वेदांता लिमिटेड: 366 करोड़ रुपये
- वेस्टर्न यूपी पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड: 220 करोड़ रुपये
- भारती एयरटेल लिमिटेड: 183 करोड़ रुपये
- यशोदा सुपर स्पेशलिटी अस्पताल: 162 करोड़ रुपये
- डीएलएफ कमर्शियल डेवलपर्स लिमिटेड: 130 करोड़ रुपये
- जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड: 125 करोड़ रुपये
- रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड: 100 करोड़ रुपये
- टाटा समूह: 80 करोड़ रुपये
- अदानी समूह: 70 करोड़ रुपये
- हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड: 60 करोड़ रुपये
- आईसीआईसीआई बैंक: 50 करोड़ रुपये
Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट का चुनावी बांड पर ऐतिहासिक फैसला
- सूची में 20 से अधिक राजनीतिक दलों का नाम शामिल है।
- सूची में 15 से अधिक कंपनियों का नाम शामिल है जिन्होंने ₹100 करोड़ से अधिक के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे हैं।
चुनाव आयोग और चुनावी बांड
परिचय: भारतीय चुनाव आयोग (ECI) भारत में चुनावों की स्वतंत्र और निष्पक्ष conduct के लिए जिम्मेदार एक संवैधानिक निकाय है। 2018 में चुनावी बांड (Electoral Bonds) की शुरूआत चुनावों में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था।
चुनावी बांड क्या है?
Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट का चुनावी बांड पर ऐतिहासिक फैसला, चुनावी बांड एक वित्तीय साधन है जो किसी भी राजनीतिक दल को धन दान करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। यह बांड भारतीय स्टेट बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं और ₹1,000, ₹10,000, ₹1 लाख, ₹10 लाख और ₹1 करोड़ के मूल्यवर्ग में उपलब्ध होते हैं। चुनावी बांड खरीदने वाले का नाम गुप्त रखा जाता है, जिसका अर्थ है कि दानदाता की पहचान सार्वजनिक रूप से ज्ञात नहीं होती है। यह दानदाताओं को राजनीतिक दलों को गुमनाम रूप से धन दान करने की अनुमति देता है। चुनावी बांड को 2017 में मोदी सरकार द्वारा पेश किया गया था। सरकार का दावा है कि यह योजना राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाएगी और काले धन के उपयोग को कम करेगी। हालांकि, चुनावी बांड की आलोचना कई आधारों पर की गई है। आलोचकों का तर्क है कि यह योजना पारदर्शिता को कम करती है और राजनीतिक दलों पर बड़े व्यवसायों और अमीर व्यक्तियों के प्रभाव को बढ़ाती है।
चुनावी बांड के लाभ:
- पारदर्शिता: चुनावी बांड दाताओं की पहचान छुपाते हैं, जिससे धन शोधन और राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
- जवाबदेही: चुनावी बांड के बारे में जानकारी प्राप्त करना मुश्किल है, जिससे चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता की कमी होती है।
- समानता: चुनावी बांड बड़े दलों को अनुचित लाभ दे सकते हैं, जिससे चुनावी मैदान में असमानता बढ़ सकती है।
कमियां:
- पारदर्शिता को कम करता है
- राजनीतिक दलों पर बड़े व्यवसायों और अमीर व्यक्तियों के प्रभाव को बढ़ा सकता है
- मनी लॉन्ड्रिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है
चुनाव आयोग की भूमिका:
चुनाव आयोग चुनावी बांड के दुरुपयोग को रोकने के लिए कई कदम उठा रहा है। इनमें शामिल हैं:
- दाताओं की पहचान का सत्यापन: चुनाव आयोग ने बैंकों को दाताओं की पहचान का सत्यापन करने के लिए निर्देश दिए हैं।
- चुनावी बांड के बारे में जानकारी का प्रकटीकरण: चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को चुनावी बांड से प्राप्त धन के बारे में जानकारी का खुलासा करने के लिए निर्देश दिए हैं।
- चुनावी वित्तपोषण पर नज़र रखना: चुनाव आयोग चुनावी वित्तपोषण पर नज़र रखने के लिए विभिन्न उपायों का उपयोग कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट का चुनावी बांड पर ऐतिहासिक फैसला, चुनावी बांड पर बहस:
चुनावी बांड को लेकर कई आलोचनाएं भी हैं। कुछ मुख्य मुद्दे हैं:
- अनाम दान: चुनावी बांड दाताओं की पहचान छुपाते हैं, जिससे धन शोधन और राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है।
- पारदर्शिता की कमी: चुनावी बांड के बारे में जानकारी प्राप्त करना मुश्किल है, जिससे चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता की कमी होती है।
- असमानता: चुनावी बांड बड़े दलों को अनुचित लाभ दे सकते हैं, जिससे चुनावी मैदान में असमानता बढ़ सकती है।
- सीमित दायरा: यह जानकारी केवल उन कंपनियों को दर्शाती है जिन्होंने ₹100 करोड़ या उससे अधिक का दान दिया है। 20 से अधिक अन्य कंपनियों ने भी इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से दान दिया है। डेटा में दानदाताओं के पते या व्यवसाय विवरण का खुलासा नहीं किया गया है। यह पारदर्शिता के बारे में चिंताएं पैदा करता है। इसलिए, आपके द्वारा प्रदान की गई जानकारी ज्यादातर सटीक है, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण विवरण गायब हैं। यह सूची भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के आधार पर कुछ प्रमुख कंपनियों और इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को उनके योगदान को प्रदर्शित करती है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है अधिक जानकारी के लिए आप चुनाव आयोग की website par padd shakte hai
Disclaimer
यह लेख वर्तमान समाचार रिपोर्टों और चुनावी बांड के संबंध में हाल ही में Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट का चुनावी बांड पर ऐतिहासिक फैसले पर आधारित है। यद्यपि प्रकाशन के समय जानकारी सटीक मानी जाती है, कानूनी मामले सतत व्याख्या और संभावित भविष्य के संशोधनों के अधीन हैं।इस विषय पर सबसे नवीनतम और व्यापक जानकारी के लिए, हम आधिकारिक स्रोतों, जैसे सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट या सरकारी प्रकाशनों से परामर्श करने की सलाह देते हैं। इसके अतिरिक्त, इस लेख में व्याख्याएं और राय शामिल हो सकती हैं। तथ्यात्मक जानकारी को व्यक्तिपरक दृष्टिकोणों से अलग करना महत्वपूर्ण है। हम पाठकों को आगे शोध करने और अपने स्वयं के सूचित निष्कर्ष निकालने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।