भारतीयों में प्रोटीन की कमी: कारण, प्रभाव और समाधान
क्या आपने कभी सोचा है कि हम भारतीय दुबले-पतले दिखते हैं, लेकिन फिर भी पेट बाहर निकला हुआ होता है? या क्यों हमारे बड़े-बुजुर्गों को थोड़ी उम्र होते ही चलने-फिरने में दिक्कत होने लगती है? और सबसे चौंकाने वाली बात, हमारी औसत हाइट साल दर साल घटती क्यों जा रही है, जबकि दुनिया के अन्य विकासशील देशों में यह बढ़ रही है?
भारत में डायबिटीज के मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा क्यों हो रहा है? इन सभी समस्याओं का एक बड़ा कारण है प्रोटीन की कमी (Protein Deficiency)।
अमीर और गरीब दोनों मैं प्रोटीन की कमी
यह कमी ग्रामीण के साथ-साथ शहरी आबादी में भी लगभग समान प्रतिशत में मौजूद है। इंडियन मेडिकल रिसर्च ब्यूरो (IMB) का एक सर्वेक्षण बताता है कि 73% शहरी अमीर लोग भी प्रोटीन डेफिशिएंट हैं। यानी, भले ही किसी आर्थिक रूप से ठीक-ठाक परिवार से आते हों, अपनी डाइट में पर्याप्त प्रोटीन नहीं खा रहे हों।

भारत में प्रोटीन की कमी के चौंकाने वाले आंकड़े
आंकड़े बताते हैं कि भारत दुनिया के सबसे अधिक प्रोटीन डेफिशिएंट देशों में से एक है। यहां की 80% से अधिक आबादी न्यूनतम दैनिक प्रोटीन आवश्यकता से कम प्रोटीन का सेवन कर रही है।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के अनुसार, एक स्वस्थ व्यक्ति को प्रति दिन अपने शरीर के वजन के अनुसार 1 ग्राम प्रति किलोग्राम (1g/kg) प्रोटीन लेना चाहिए।
- अगर आपका वजन 60 किलो है, तो आपको वजन के बराबर 60 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता है।
- ग्लोबल औसत प्रोटीन खपत: 68 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रति दिन
- भारत में औसत प्रोटीन खपत: केवल 47 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रति दिन, जो पूरे एशिया में सबसे कम है।
- यदि आप एथलीट, वर्कआउट, किसान, मज़दूर – प्रोटीन आवश्यकता दोगुनी (60 किलो × 2 ग्राम) = 120gm
- PRODIGY के अनुसार, भारत में 10 में से 9 लोग अपनी दैनिक आवश्यकता से कम प्रोटीन का सेवन करते हैं।
- मांसपेशी स्वास्थ्य: 30-55 वर्ष की आयु के 71% लोगों की मांसपेशी स्वास्थ्य खराब है
- प्रेगनेंसी और लैक्टेशन: 90% से अधिक महिलाएं गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान प्रोटीन की कमी से जूझती हैं।
प्रोटीन क्यों जरूरी है? हमारे शरीर में प्रोटीन के कार्य
भारत में ज्यादातर लोगों को प्रोटीन क्यों जरूरी है, इसके बारे में ठीक से पता नहीं है। “प्रोटीन पैराडॉक्स” सर्वेक्षण में, जिसमें 16 शहरों की 2000 माताओं से बात की गई, पता चला कि ज्यादातर माताओं को प्रोटीन के कार्य के बारे में ठीक से पता नहीं है।
Source: Protein Paradox
85% माताओं को लगता है कि प्रोटीन से वजन बढ़ता है। इसीलिए, उन्होंने कहा कि वे प्रोटीन के बजाय विटामिन और कार्बोहाइड्रेट खाना ज्यादा पसंद करेंगी।
प्रोटीन हमारे लिए क्यों जरूरी है?
प्रोटीन हमारे शरीर के लिए बिल्डिंग ब्लॉक्स की तरह काम करता है। यह न केवल मांसपेशियों, हड्डियों, त्वचा, और बालों के लिए जरूरी है, बल्कि कई अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में भी भूमिका निभाता है:
- इम्यून सिस्टम: एंटीबॉडीज, जो इंफेक्शन से लड़ती हैं, प्रोटीन से बनी होती हैं।
- हार्मोन और एंजाइम: ये सभी प्रोटीन से निर्मित होते हैं।
- रक्त और ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट: हीमोग्लोबिन, जो ऑक्सीजन को कोशिकाओं तक ले जाता है, एक प्रोटीन है।
आवश्यक अमीनो एसिड क्या हैं?
प्रोटीन 20 अमीनो एसिड्स (Amino Acids) से बनता है, इनमें से 11 को हमारी बॉडी खुद से बना लेती है। जिनमें से 9 आवश्यक अमीनो एसिड हैं, जिन्हें शरीर नहीं बना सकता और इन्हें भोजन से लेना जरूरी है, इन्हें आवश्यक अमीनो एसिड (Essential Amino Acids) कहते हैं।
प्रोटीन के स्रोत: शाकाहारी और मांसाहारी
प्रोटीन वैसे तो हर कच्चे भोजन में मौजूद होता है, लेकिन इसकी मात्रा अलग-अलग होती है। जिन फूड्स में यह ज्यादा मात्रा में होता है, उन्हें हम प्रोटीन रिच फूड (Protein Rich Food) कहते हैं और उन्हें प्रोटीन सोर्स (Protein Source) के रूप में माना जाता है। जैसे:
- मांसाहारी स्रोत: मीट, अंडे।
- शाकाहारी स्रोत: पनीर, सोया चंक्स, टोफू, विभिन्न प्रकार की दालें, बीन्स, नट्स और सीड्स।
भारत में प्रोटीन की कमी के मुख्य कारण
भारत में, हम अक्सर प्रोटीन (Protein) को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, और यही हमारी बिगड़ती सेहत का एक बड़ा कारण है। चौंकाने वाली बात ये है कि देश के 80% से ज़्यादा लोग ज़रूरी प्रोटीन नहीं ले पा रहे हैं, चाहे वे अमीर हों या गरीब, शाकाहारी हों या मांसाहारी।
1. सामर्थ्य (Affordability)
एक प्रोटीन रिच डाइट (Protein Rich Diet) थोड़ी सी महंगी तो होती है। स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड की 2022 की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया की एक-तिहाई आबादी एक स्वस्थ आहार (Healthy Diet) को अफोर्ड ही नहीं कर सकती। दुनिया की एक तिहाई आबादी, और भारत में भी 28% लोग, एक स्वस्थ आहार (Healthy diet) का खर्च नहीं उठा पाते। यानी जो गरीबी रेखा से दोगुना भी कमा रहे हैं, वह भी एक हेल्दी डाइट को अफोर्ड नहीं कर सकते।
2. शाकाहार (Vegetarianism)
भारत में दुनिया की सबसे बड़ी शाकाहारी आबादी है। जहाँ मांसाहारी प्रोटीन (Non-vegetarian protein) (जैसे मीट और अंडे) में सभी ज़रूरी अमीनो एसिड होते हैं, वहीं ज़्यादातर शाकाहारी प्रोटीन (Vegetarian protein) स्रोत अधूरे होते हैं। इसका मतलब है कि शाकाहारियों को अपने खाने में अलग-अलग दालें, सोया और नट्स शामिल करने चाहिए ताकि पूरी प्रोटीन की ज़रूरतें पूरी हो सकें।
3. भारतीय खान-पान की आदतें (Indian Food Habits)
ये सबसे बड़ी दिक्कत है! हमारी थाली में रोटी और चावल (Roti and rice) का दबदबा है। ये भले ही पेट भर दें, पर इनमें प्रोटीन बहुत कम होता है (सिर्फ 2-4 ग्राम प्रति रोटी/चावल)। IMRB सर्वे दिखाता है कि 84% शाकाहारी और 65% मांसाहारी भारतीय डाइट में भी प्रोटीन की कमी है, क्योंकि हम बहुत ज़्यादा कार्बोहाइड्रेट खाते हैं और प्रोटीन के स्रोतों को कम।
- गेहूं के आटे से बनी एक 6 इंच की चपाती में सिर्फ 2 से 4 ग्राम तक ही प्रोटीन होता है।
- वहीं, 100 ग्राम पके चावल में सिर्फ 2.5 से 3 ग्राम तक ही प्रोटीन होता है।
4. हरित क्रांति का प्रभाव (Impact of Green Revolution)
हरित क्रांति (Green Revolution) ने हमें भूख से बचाया, पर साथ ही हमारे खाने से बाजरा (Millets) जैसे पौष्टिक अनाज को हटाकर गेहूं और चावल को मुख्य बना दिया। ये दोनों ही पेट भरते हैं, पर प्रोटीन के मामले में कमज़ोर हैं।
डाइजेस्टेबल इनडिस्पेंसिबल अमीनो एसिड स्कोर (DIAAS) इंडेक्स में गेहूं और चावल दोनों ही कम स्कोरिंग प्रोटीन (Low Scoring Proteins) में आते हैं। इस इंडेक्स में टॉप पर वे प्रोटीन आते हैं जो पशु स्रोत से आते हैं।
5. दालों को पकाने का तरीका (Cooking Method of Pulses)
दालों में प्रोटीन होता है (100 ग्राम कच्ची दाल में 20 ग्राम), पर हम इन्हें इतना पतला बनाते हैं कि एक कटोरी दाल में मुश्किल से 5 ग्राम प्रोटीन बचता है, जिसे हम फिर ढेर सारे चावल या रोटी के साथ खाते हैं।
6. वीगनवाद और भावनात्मक निर्णय (Veganism and Emotional Decisions)
कई बार वीगनवाद (Veganism) को भावनाओं में बहकर अपनाया जाता है, और लोग एनिमल प्रोडक्ट्स छोड़ तो देते हैं, पर प्रोटीन की कमी को पूरा करने के लिए सही पोषण योजना नहीं बनाते।
7. गलत सूचना और मिथक (Misinformation and Myths)
आज बहुत सारे धर्मगुरु अपने मंचों से लोगों को नॉनवेज छोड़ने को कह रहे हैं, और लोग उनकी बातों में आकर भक्ति भाव में बहकर छोड़ भी दे रहे हैं। पर क्या वे शाकाहारी डाइट को कैसे हेल्दी बनाया जाए, इस पर कोई बात करते हैं?
ऐसे ही सोशल मीडिया के दौर में कई ऐसे स्व-घोषित डॉक्टर, नेचुरोपैथ, और नीम-हकीम पैदा हो गए हैं जो लोगों में प्रोटीन को लेकर गलत सूचना फैला रहे हैं।
समाधान: भारतीय थाली में बदलाव
भारत में प्रोटीन की कमी सिर्फ गरीबी की नहीं, बल्कि हमारी खाने की आदतों (Food Habits) की समस्या है। हम दाल-सब्जी और ढेर सारे रोटी-चावल खाकर सोचते हैं कि पेट भर गया, पर प्रोटीन की कमी रह जाती है – चाहे आप शाकाहारी हों या मांसाहारी।
अपनी डाइट में प्रोटीन कैसे बढ़ाएं?
आपको अपनी थाली में उन स्रोतों को बढ़ाने की जरूरत है जहां से क्वालिटी प्रोटीन (Quality Protein) मिल सकता है, और उन स्रोतों को कम करने की जरूरत है जो पेट तो भरते हैं
- दालें: पतली दाल के बजाय गाढ़ी दाल खाएं, या सीधे दाल ही लें। रोटी-चावल कम करें।
- दूध उत्पाद (Milk Products): शाकाहारी हैं तो पनीर (100 ग्राम में 18-20 ग्राम प्रोटीन!) और दही ज़रूर शामिल करें।
- अंडे (Eggs): अगर आप अंडा खाते हैं, तो इसे अपनी डाइट का रेगुलर हिस्सा बनाएं।
- सोया और टोफू: ये भी प्रोटीन के बेहतरीन स्रोत हैं, इन्हें अपनी थाली में जगह दें।
सरकारी हस्तक्षेप और जागरूकता अभियान
हमारी खाने की संस्कृति को बदलना मुश्किल है, पर नामुमकिन नहीं। जैसे हरित क्रांति ने हमारी थाली बदली, वैसे ही जागरूकता (Awareness) से हम प्रोटीन की कमी को भी दूर कर सकते हैं।
सरकार की भूमिका यहाँ अहम है:
- जागरूकता अभियान: लोगों को सिखाएं कि रोज़मर्रा के खाने को प्रोटीन युक्त कैसे बनाएं।
- मिलेट्स और दालों को बढ़ावा: इनकी खेती और उपलब्धता को बढ़ाएं।
- सब्सिडी पर प्रोटीन: आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को रियायती दर पर प्रोटीन युक्त भोजन उपलब्ध कराएं।
याद रखें, एक स्वस्थ आबादी ही एक मजबूत देश बनाती है। हमारी युवा शक्ति तभी देश की तरक्की में पूरा योगदान दे पाएगी, जब वे शारीरिक रूप से स्वस्थ होंगे!