Amendments of Indian Constitution: भारतीय संविधान संशोधन की सूची (1951-2024)
Introduction:
भारतीय संविधान (Indian Constitution) दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है, जिसे समय-समय पर बदलने की आवश्यकता पड़ती है। इन बदलावों को हम “संविधान संशोधन” (Constitution Amendments) कहते हैं। ये संशोधन न केवल देश की बदलती परिस्थितियों को दर्शाते हैं, बल्कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधानपालिका की शक्ति को भी पुनर्परिभाषित करते हैं। UPSC और अन्य सरकारी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए ये जानना बेहद महत्वपूर्ण है कि कौन-कौन से संशोधन कब और क्यों किए गए।
Important Amendments of Indian Constitution
भारतीय संविधान को समय-समय पर संशोधित किया गया है ताकि यह समाज और समय के अनुरूप बना रहे। भारतीय संविधान के ये महत्वपूर्ण संशोधन यूपीएससी और अन्य परीक्षाओं के दृष्टिकोण से बेहद आवश्यक हैं। इस लेख में, हम आपको संविधान संशोधन प्रक्रिया, संबंधित महत्वपूर्ण अनुच्छेद, और अब तक हुए 106 संशोधनों की जानकारी देंगे।
संविधान में संशोधन का अधिकार (Amendment Process and Authority)
संविधान के भाग 20 के अंतर्गत अनुछेद 368 में संसद को संविधान संशोधन करने की शक्तियां प्रदान की गई हैं। संशोधन विधेयक पास करने के लिए संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है।
- संशोधन प्रक्रिया: संविधान संशोधन के लिए एक विधेयक संसद में प्रस्तुत किया जाता है और इसे दोनों सदनों में पास होना अनिवार्य है।
- राष्ट्रपति की सहमति: संशोधन विधेयक संसद द्वारा पारित होने के बाद राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति की सहमति के बाद ही यह एक अधिनियम बनता है।
- इसके तहत संसद द्वारा संविधान में नए उपबंध जोड़कर या हटाकर बदलाव किया जा सकता है।
- संविधान संशोधन की प्रक्रिया को साउथ अफ्रीका ली गई हैं।
संविधान संशोधन तीन प्रकार से किया जाता है –
- साधारण बहुमत: सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के 50% से अधिक के बहुमत से है
- विशेष बहुमत: 2/3 से पारित विधायक
- विशेष बहुमत तथा राज्यों का अनुसमर्थन: 2/3 से पारित विधायक + राज्य के 50% से अधिक विधानमंडलों द्वारा इसका समर्थन किया जाए
भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण प्रमुख संशोधनों की सूची (1951-2024):
अब तक भारतीय संविधान में 1951 – 2024 तक 106 संशोधन किए जा चुके हैं। इस आर्टिकल में अब तक के सभी संविधान संशोधन को सूचीबद्व किया गया गया।
प्रथम संशोधन अधिनियम, 1951
- 9वीं अनुसूची भूमि सुधार अधिनियम ।
- सामाजिक और आर्थिक तथा पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए विशेष उपबंध बनाने हेतु राज्यों को शक्ति प्रदान की गई।
- कानून की रक्षा के लिए संपत्ति अधिग्रहण आदि की व्यवस्था।
- भूमि सुधार एवं न्यायिक समीक्षा से जुड़े अन्य कानून को नौवीं सूची में स्थान
- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर तीन और प्रमुख कारणों से प्रतिबंध की कवायद, जैसे-लोक आदेश, विदेशी राज्यों के साथ दोस्ताना संबंध, किसी अपराध के लिए भड़काना। प्रतिबंधों को तर्कसंगत बनाया और इस प्रकार ये न्याययोज्य हैं।
- यह व्यवस्था की कि राज्य ट्रेडिंग और राज्य द्वारा किसी व्यापार या व्यवसाय के राष्ट्रीयकरण को केवल इस आधार पर अवैध घोषित नहीं किया जा सकता कि यह व्यापार या व्यवसाय के अधिकार का उल्लंघन करता है।
2nd संविधान संशोधन 1952
- लोकसभा में एक सदस्य के प्रतिनिधित्व को 750,000 लोगों से अधिक किया गया।
3rd संविधान संशोधन 1954
- संसद को खाद्य पदार्थ, पशुचारा, कच्चा कपास, कपास के बीज एवं कच्चे जूट के उत्पादन, आपूर्ति और वितरण पर नियंत्रण के लिए लोक हित में शक्तिशाली बनाया गया।
4rd संविधान संशोधन 1955
- निजी संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण के स्थान पर दी जाने वाली क्षतिपूर्ति को प्रमात्रा को न्यायालय की जांच से बाहर किया गया।
- किसी व्यापार को राष्ट्रीयकृत बनाने के लिए राज्यों को अधिकार।
- नौवीं अनुसूची में कुछ और अधिनियमों की बढ़ोतरी।
- अनुच्छेद 31 (क) के क्षेत्र में विस्तार (विधियों की व्यावृत्ति)।
5th संविधान संशोधन 1955
- राष्ट्रपति को यह शक्ति प्रदान की गई कि वह राज्यों के क्षेत्र, सीमा और नामों को प्रभावित करने वाले प्रस्तावित केन्द्रीय विधान पर अपने मत देने के लिए राज्यमण्डली हेतु समय-सीमा का निर्धारण करें।
6th संविधान संशोधन 1956
- केंद्रीय सूची में नए विषयों का जुड़ाव, जैसे अंतर्राज्यीय व्यापार और वाणिज्य के तहत वस्तुओं की खरीद-विक्री पर कर और इसी संबंध में राज्यों की शक्तियों पर पाबंदियां।
7th संविधान संशोधन 1956
- राज्यों के चार वर्गों की समाप्ति; जैसे-भाग-क, भाग-ख, भाग-ग और भाग-भ इनके स्थान पर राज्यों को भाषा के आधार पर 14 राज्यों एवं 6 केंद्रशासित प्रदेशों में बांटा गया
- संविधान की दूसरी और सातवीं अनुसूची में संशोधन किया गया।
- दो या उससे अधिक राज्यों के बीच सामूहिक न्यायालय की स्थापना।
- उच्च न्यायालयों में अतिरिक्त न्यायाधीश एवं कार्यकारी न्यायाधीश को नियुक्ति की व्यवस्था।
8th संविधान संशोधन 1960
अनुसूचित जाति एवं जनजाति को आरक्षण व्यवस्था में विस्तार और आंग्ल भारतीय प्रतिनिधि की लोकसभा एवं विधानसभाओं में दस वर्ष के लिए बढ़ोतरी 1970 तक
9th संविधान संशोधन 1960
भारत-पाक समझौते (1958) के अनुसार पाकिस्तान को चेकबाड़ी संघ (पश्चिम बंगाल स्थित) के भारतीय राज्यक्षेत्र का समर्पण।
10वां संशोधन अधिनियम, 1961
- इस संविधान संशोधन के माध्यम से पुर्तगाल से केंद्रशासित प्रदेश के रूप में दादरा, नगर और हवेली का अधिग्रहण किया। 783 से 1785 के बीच पुर्तगालियों ने दादरा और नगर हवेली पर कब्ज़ा किया था। 21 जुलाई, 1954 को स्वयंसेवकों और आयोजकों ने दादरा पर कब्ज़ा कर लिया था।
- इसके माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 240 में संशोधन किया गया।
11 वा संशोधन अधिनियम 1961
- उपराष्ट्रपति की निर्वाचन प्रणाली में परिवर्तनः संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की बजाय निर्वाचक मण्डल की व्यवस्था।
- राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को उपयुक्त निर्वाचक मण्डल में रिक्तता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
12th संविधान संशोधन 1962
- गोवा, दमन और दीव भारतीय संघ में शामिल।
13th संविधान संशोधन 1962
- नागालैंड को राज्य का दर्जा 1 दिसंबर 1963 एवं इसके लिए विशेष उपबंध।
14वां संशोधन अधिनियम, 1962
- पुदुचेरी भारतीय संघ में शामिल।
- हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमन एवं दीव तथा पुडुचेरी के लिए विधानमंडल एवं मंत्रिपरिषद की व्यवस्था।
15 वां संशोधन अधिनियम, 1963
- उच्च न्यायालय को किसी व्यक्ति या प्राधिकरण के खिलाफ। राज्यों के बाहर भी दायर करने का अधिकार रिट। यदि इसका कारण उसके क्षेत्राधिकार में उत्पन्न हुआ हो।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष।
- उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की उसी उच्च न्यायालय में कार्यकारी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की व्यवस्था।
- एक उच्च न्यायालय से दूसरे में स्थानांतरण पर न्यायाधीशों को क्षतिपूरक भत्तों का भुगतान।
- उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उच्चतम न्यायालय में अस्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की व्यवस्था।
- उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की उम्र के निर्धारण हेतु प्रक्रिया की व्यवस्था।
16th संविधान संशोधन 1963
- राज्यों को वाक् और अभिव्यक्ति स्वतंत्रता, शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन और राष्ट्र की संप्रभुता और अखण्डता के हितों में संगम बनाने के अधिकारों पर और अधिक प्रतिबंध लगाने की शक्ति प्रदान की गई।
- विधानमण्डल के निर्वाचन में भाग लेने वाले अभ्यर्थियों, विधानमण्डल के सदस्यों, मंत्रियों, न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक और लेखा परीक्षक द्वारा ली जाने वाली शपथ या प्रतिज्ञान के प्रारूप में संप्रभुत और अखण्डता को शामिल किया गया
17वां संशोधन अधिनियम, 1964
- यदि भूमि का बाजार मूल्य बतौर मुआवजा न दिया जाए हो तो व्यक्तिगत हितों के लिए भू-अधिग्रहण प्रतिबंधित।
- नौवीं अनुसूची में 44 और अधिनियमों की बढ़ोतरी।
18th संविधान संशोधन 1966
- इस शक्ति को स्पष्ट कर दिया गया कि संसद को राज्य निर्माण का अधिकार है। इसमें यह भी स्पष्ट किया गया कि दो राज्यों को जोड़ने व पृथक् का अधिकार भी उसमें निहित है।
- पंजाब का पुनर्गठन (PEPSU): 1 नवंबर, 1966 को हुआ था: इस दिन पंजाब पुनर्गठन अधिनियम के तहत पंजाब को विभाजित करके हरियाणा और पंजाब नाम के दो राज्य बनाए गए, पंजाब के पहाड़ी इलाकों को हिमाचल प्रदेश में मिला दिया गया
19th संविधान संशोधन 1966
- किया गया कि दो राज्यों को जोड़ने व पृथक् का अधिकार भी उसमें निहित है। निर्वाचन अधिकरणों की व्यवस्था समाप्त और उच्च न्यायालयों को निर्वाचन याचिका पर सुनवाई की शक्ति प्रदान।
20वां संशोधन अधिनियम, 1966
- उत्तर प्रदेश में कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को वैधता, जिनको उच्चतम न्यायालय ने अवैध घोषित किया था।
21 वां संशोधन अधिनियम, 1967
- सिंधी भाषा आठवीं अनुसूची में 15 वीं भाषा के रूप में शामिल।
22वां संशोधन अधिनियम, 1969
- असम में से एक अलग स्वायत्त राज्य मेघालय का निर्माण (21 January 1972)।
23वां संशोधन अधिनियम, 1969
- अनुसूचित जाति/जनजाति एवं आंग्ल-भारतीय प्रतिनिधित्व को लोकसभा एवं विधानसभा में इनके प्रतिनिधित्य की और अतिरिक्त दस वर्ष के लिए बढ़ोतरी (1980 तक)।
24वां संशोधन अधिनियम, 1971
- 1. संसद को यह अधिकार कि यह संविधान के किसी भी हिस्से का, चाहे वह मूल अधिकार हो, संशोधन कर सकती है।
- 2. राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक संशोधन विधेयक को मंजूरी दी जानी जरूरी।
25वां संशोधन अधिनियम, 1971
- संपति के मूल अधिकार में कटौती।
- अनुच्छेद 39 (ख) या (ग) में वर्णित निदेशक तत्वों को प्रभावी करने के लिए बनाई गई किसी भी विधि को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि अनुच्छेद 14. 19 और 31 द्वारा अभिनिश्चित अधिकारों के उल्लंघन के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
26वां संशोधन अधिनियम, 1971
- रियासतों के शासकों को दिए जाने वाले प्रीयी पर्य और प्रांतीय राज्यों के विशेषाधिकारों की समाप्ति।
27वां संशोधन अधिनियम, 1971
- कुछ केंद्रशासित राज्यों के प्रशासकों को अध्यादेश जारी करने के प्रति शक्तिशाली बनाया गया।
- नए केंद्रशासित प्रदेशों अरुणाचल प्रदेश एवं मिजोरम राज्यों का गठन के लिए कुछ विशेष उपबंध।
- नए राज्य मणिपुर के लिए विधानमंडल एवं मंत्रिपरिषद निर्माण के लिए संसद को अधिकार।
28वां संशोधन अधिनियम, 1972
- आईसीएस अधिकारियों के लिए विशेष विशेषाधिकारों की समाप्त कर संसद को उनकी सेवा शर्तें तय करने का अधिकार।
29वां संशोधन अधिनियम, 1972
- नौवीं अनुसूची में दो केरल भू-सुधार अधिनियमों को शामिल किया गया।
30वां संशोधन अधिनियम, 1972
- नागरिक अधिकार संबंधित मामले में उच्चतम न्यायालय में अपील के लिए 20,000 रुपये की जरूरत खत्म एवं यह व्यवस्था दी कि यदि विधि की वास्तविक व्याख्या का कोई मामला हो तो ही उच्चतम न्यायालय में अपील हो सकती है।
31वां संशोधन अधिनियम, 1972
- लोकसभा सीटों की संख्या 525 से बढ़ाकर 545
32वां संशोधन अधिनियम, 1973
- आंध्र प्रदेश में तेलंगाना क्षेत्र के लोगों की आकांक्षा के अनुसार उनकी संतुष्टि के लिए विशेष उपबंध।
33वां संशोधन अधिनियम, 1974
संसद या विधानमंडल के अध्यक्ष/सभापति द्वारा किसी सदस्य के इस्तीफे को मंजूर करने की व्यवस्था, यदि वह महसूस करें कि त्यागपत्र स्वैच्छिक या वास्तविक है।
34वां संशोधन अधिनियम, 1974
- नौवीं सूची में विभिन्न राज्यों के बीस भू-सुधार एवं भू-पट्टेदारी (Land tenure) अधिनियम शामिल।
35वां संशोधन अधिनियम, 1974
- सिक्किम की संरक्षण व्यवस्था को बर्खास्त करते हुए उसे भारतीय संघ का सहयोगी राज्य बनाया गया। भारतीय संघ में सिक्किम को जोड़े जाने की सेवा शर्तों के लिए 10वीं अनुसूची को जोड़ा गया।
36वां संशोधन अधिनियम, 1975
- सिक्किम को 16 मई 1975 भारतीय संघ का पूर्ण 22th राज्य बनाकर दसवीं अनुसूची को समाप्त कर दिया गया।
37वां संशोधन अधिनियम, 1975
- केंद्र शासित राज्य अरुणाचल प्रदेश के लिए विधानसभा और मंत्रिपरिषद की व्यवस्था।
38वां संशोधन अधिनियम, 1975
- 1. राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा को किसी भी अदालत मे गैर-वाद योग्य घोषित।
- 2. राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासकों द्वारा जारी अध्यादेश गैर-वाद योग्य घोषित।
- 3. राष्ट्रपति को विभिन्न आधारों पर राष्ट्रीय आपातकाल की विभिन्न घोषणाएं करने की शक्ति प्रदान की गई।
39वां संशोधन अधिनियम, 1975
- 1. राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष से संबंधित विवादों को न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर रखा गया। इन सबका निर्धारण संसद द्वारा निर्धारित प्राधिकरण के द्वारा किया जाएगा।
- 2. नौवीं अनुसूची में कुछ केन्द्रीय अधिनियमों का समायोजन।
40वां संशोधन अधिनियम 1976
- 1. संसद को समुद्रीय जल, महाद्वीपीय मश्ग्रतट, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (एस ई जैड) और भारत के समुद्रीय जोनों की सीमाओं के समय-समय पर निर्धारण की शक्ति।
- 2. ज्यादातर धू सुधार से संबंधित 64 और अन्य केंद्र और राज्य विधियों को नौवी सूची में शामिल किया गया।
41वां संशोधन अधिनियम 1976
- राज्य लोक सेवा आयोग एवं संयुक्त लोक सेवा आयोग के सदस्यों की आयु सीमा 60 से 62 वर्ष की गई।
42वां संशोधन अधिनियम 1976: PM – Indira Gandhi
- तीन नए शब्द जोड़ गए (समाजवादी, धर्म निरपेक्ष एवं अखंडता संशोधन, इसे लघु संविधान के रूप में जाना जाता है। इससे स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों को प्रभावी बनाया)
- पांच विषयों का राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरण, जैसे-शिक्षा, वन, वन्य जीवों एवं पक्षियों का संरक्षण, नाप-तौल और न्याय प्रशासन
- लोकसभा एवं विधानसभा के कार्यकाल में 5 से 6 वर्ग की बढ़ोतरी।
- नागरिकों द्वारा मूल कर्तव्यों को जोड़ा गया, भाग IV-A के तहत नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51-क) निर्धारित किया गए।
- राष्ट्रपति को कैबिनेट की सलाह के लिए बाध्यता।
- प्रशासनिक अधिकरणों एवं अन्य मामलों पर अधिकरणों की व्यवस्था (भाग XIIV क जोड़ा गया)
- 1971 की जनगणना के आधार पर 2001 तक लोकसभा सीटों एवं राज्य विधानसभा सीटों को निश्चित किया गया।
- सांविधानिक संशोधन को न्यायिक जांच से बाहर किया गया।
- न्यायिक समीक्षा एवं रिट न्यायक्षेत्र में उच्चतम एवं उच्च्च न्यायालयों की शक्ति में कटौती।
- निदेशक तत्वों के कार्यान्वयन हेतु बनाई गई विधियों को न्यायालय द्वारा इस आधार पर अवैध घोषित नहीं किया जा सकता कि ये कुछ मूल अधिकारों का उल्लंघन है।
- संसद् को राष्ट्र विरोधी कार्यकलापों के संबंध में कार्यवाही करने के लिए विधियां बनाने की शक्ति प्रदान की गयी और ऐसी विधियां मूल अधिकारों पर अभिभावी होंगी।
- तीन नए निदेशक तत्व जोड़े गए अर्थात समान न्याय और निशुल्क विधिक सहायता, उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना, पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा।
- भारत के किसी एक भाग में राष्ट्रीय आपदा की घोषणा।
- राज्य में राष्ट्रपति शासन के कार्यकाल में एक बार में छह माह से एक साल तक बढ़ोतरी।
- केंद्र को किसी राज्य में कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए सैन्य बल भेजने की शक्ति।
- संसद और विधानमंडल में कोरम की आवश्यकता की समाप्ति।
- संसद को यह निर्णय लेने में शक्ति प्रदान की कि समय-समय पर अपने सदस्यों एवं समितियों के अधिकार एवं विशेषाधिकारों का निर्धारण करे।
- अखिल भारतीय विधिक सेवा के निर्माण की व्यवस्था।
- सिविल सेवक को दूसरे चरण पर जांच के उपरांत प्रतिवेदन के अधिकार को समाप्त कर अनुशासनात्मक कार्यवाही को छोटा किया गया (प्रस्तावित दण्ड के मामले में)
43वां संशोधन अधिनियम 1977
- 1. न्यायिक समीक्षा एवं रिट जारी करने के संदर्भ में उच्चतम न्यायालयों एवं उच्च न्यायालयों के न्याय क्षेत्र का पुनर्सयोजन।
- 2 . राष्ट्र विरोधी कार्यकलापों के संबंध में विधि बनाने की संसद की शक्ति हटा दी गई।
44वां संशोधन अधिनियम 1978: PM – M0raji Desai
- लोकसभा एवं राज्य विधानमंडल के कार्यकाल को पूर्ववत् रखा गया (5 वर्ष)।
- मूल अधिकारों की सूची से संपत्ति का अधिकार Article 31 समाप्त किया गया और इसे केवल विधिक अधिकार बनाया गया।
- अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल में निलंबित नहीं किया जा सकता।
- संसद एवं राज्य विधानमंडल में कोरम के उपबंध को पूर्ववत रखा।
- संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के संदर्च को हटा दिया गया।
- संसद एवं राज्य विधानमंडल की कार्यवाही की रिपोर्ट के समाचारपत्र में प्रकाशन के लिए साविधानिक संरक्षण प्रदान किया गया।
- कैबिनेट की सलाह को पुनर्विचार के लिए एक चार भेजने की राष्ट्रपति को शक्ति, परन्तु पुनर्विचार के वाध्य यह बाध्यकारी होगी।
- अध्यादेश जारी करने में राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं प्रशासक की मंतुष्टि के उपबंध को समाप्त किया गया।
- उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय की कुछ शक्तियों को फिर से प्रदान किया गया।
- राष्ट्रीय आपात के संदर्भ में’ आंतरिक अशांति’ शब्द के स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द रखा गया।
- राष्ट्रपति के लिए यह व्यवस्था बनाई गई कि वह केवल कैबिनेट की लिखित सिफारिश पर ही आपातकाल घोषित कर सकता है।
- राष्ट्रीय आपात और राष्ट्रपति शासन के मुद्दे पर सुरक्षा की दृष्टि से कुछ और व्यवस्थाएं बनाई।
- उस उपबंध को हटाया गया जिसने न्यायालय के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवाद मामलों पर निर्णय देने की शक्ति छौन ली थी।
45वां संशोधन अधिनियम 1980
अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण एवं लोकसभा व विधानमंडल में आग्ल-भारतीयों के विशेष प्रतिनिधित्व को और दस वर्ष के लिए (1990 तक) बढ़ाया गया।
46वां संशोधन अधिनियम 1982
- राज्यों को विधियों में कमियों को समाप्त करने और ब्रिक्री कर बकायों को वसूलने में समर्थ बनाया गया।
- कुछ वस्तुओं पर एक समान कर दर की व्यवस्था।
47वां संशोधन अधिनियम 1984
- नौवीं अनुसूची में कुछ राज्यों के 14 भू-सुधार अधिनियमों को जोड़ा गया।
48वां संशोधन अधिनियम 1984
- पंजाब में राष्ट्रपति शासन को ऐसे विस्तार हेतु दो विशेष शर्तों को पूरा किए बिना एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए बढ़ाया जाना।
49वां संशोधन अधिनियम 1984
- त्रिपुरा में स्वायत्त जिला परिषद को संवैधानिक मंजूरी।
50वां संशोधन अधिनियम 1984
- आसूचना संगठनों और सशस्त्र बलों या आसूचना हेतु स्थापित दूरसंचार प्रणालियों में कार्यरत व्यक्तियों के मूल अधिकारों को प्रतिबंधित करने की संसद को शक्ति।
51वां संशोधन अधिनियम 1984
- मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम के लिए लोकसभा में सीटों के आरक्षण को व्यवस्था। इसी तरह मेघालय और नागालैंड की विधानसभा में व्यवस्था।
52वां संशोधन अधिनियम 1985
- इसके तहत संसद एवं राज्य विधानमंडल के सदस्यों को दल बदल के खिलाफ कानून मामले में निरहंक ठहराने की व्यवस्था है इसके लिए 10th अनुसूची को जोड़ा गया है।
53वां संशोधन अधिनियम 1986
- मिजोरम के लिए विशेष उपबंध एवं इसकी विधानसभा के लिए न्यूनतम 40 सदस्यों की व्यवस्था।
54वां संशोधन अधिनियम 1986
- उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन में बढ़ोतरी और भविष्य में संसद को साधारण विधि द्वारा इसमें परिवर्तन का अधिकार।
55वां संशोधन अधिनियम 1986
- अरुणाचल प्रदेश के लिए विशेष व्यवस्था बनाते हुए इसके विधानसभा सदस्यों की संख्या 30 निश्चित की गई।
56वां संशोधन अधिनियम 1987
- गोवा विधानसभा के सदस्यों की संख्या 30 निश्चित की गई।
57वां संशोधन अधिनियम 1987
- अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड विधानसभा में अनुसूचित जनजाति की सीरों का आरक्षण।
58वां संशोधन अधिनियम 1987
- हिन्दी भाषा में संविधान का प्राधिकृत पाठ उपलब्ध कराया गया और संविधान के हिन्दी पाठ समान विधिक मान्यता प्रदान की गई।
59वां संशोधन अधिनियम 1988
- पंजाब में राष्ट्रपति शासन का तीन वर्ष के लिए विस्तार।
- आंतरिक अशांति के आधार पर पंजाब में राष्ट्रीय आपात की घोषणा।
60वां संशोधन अधिनियम 1988
- व्यवसाय, वृति और रोजगारों पर करों की सीमा को 250 रु. प्रति वर्ष से बढ़ाकर 2500 रुपये प्रति वर्ष किया गया।
61वां संशोधन अधिनियम 1989
- लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में मतदान की उम्र 21 से घटाकर 18 वर्ष की गई।
62वां संशोधन अधिनियम 1989
- अनुसूचित जाति एवं जनजाति को आरक्षण एवं लोकसभा एवं विधानसभा में आंग्ल-भारतीयों को प्रतिनिधित्व में 10 वर्ष (वर्ष 2000 तक) वृद्धि।
63वां संशोधन अधिनियम 1990
- 59वां संशोधन अधिनियम, 1988 के तहत पंजाब के संबंध में किए गए परिवर्तन निरस्त किए गए। दूसरे शब्दों में, पंजाब में आपातकाल की व्यवस्था अन्य क्षेत्रों के समान की गई।
64वां संशोधन अधिनियम 1990
- पंजाब में राष्ट्रपति शासन का विस्तार साढ़े तीन साल के लिए कर दिया गया।
65वां संशोधन अधिनियम 1990
- अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए राष्ट्रीय आयोग में विशेष अधिकारी के स्थान पर बहुसदस्यीय व्यवस्था का उपबंध किया गया।
66वां संशोधन अधिनियम 1990
- नौवीं सूची में विभिन्न राज्यों के 55 भू-सुधार अधिनियमों को शामिल किया गया।
67वां संशोधन अधिनियम 1990
- पंजाब में राष्ट्रपति शासन का चार वर्ष के लिए विस्तार।
68वां संशोधन अधिनियम 1991
- पंजाब में राष्ट्रपति शासन का पांच वर्ष के लिए विस्तार।
69वां संशोधन अधिनियम 1991
- केंद्रशासित राज्य दिल्ली को विशेष दर्जा देते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली NCR बनाया गया। इस संशोधन में दिल्ली के लिए 70 सदस्यीय विधानसभा एवं 7 सदस्यीय मंत्रिपरिषद की व्यवस्था भी की गई।
70वां संशोधन अधिनियम 1992
- राष्ट्रपति के निर्वाचन में निर्वाचन कॉलेज के रूप में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली विधानसभा के सदस्यों एवं केंद्रशासित राज्य पुडुचेरी को भी शामिल किया गया।
71वां संशोधन अधिनियम 1992
- कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया। इसके साथ ही अनुसूचित भाषाओं की संख्या बढ़कर 18 हो गई।
72वां संशोधन अधिनियम 1992
- त्रिपुरा विधानसभा में अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था।
73वां संशोधन अधिनियम 1992
- संविधान में भाग- IX और 11वीं अनुसूची जोड़ी गयी जिसे ‘पंचायत’ नाम दिया गया।
- नई 11वीं अनुसूची में पंचायत में 29 कार्यात्मक मदें जोड़ी गई।
- पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक स्थिति एवं सुरक्षा प्रदान की गई।
- पंचायती राज के त्रिस्तरीय मॉडल के प्रावधान, SC और ST के, आबादी के अनुपात में सीटों का आरक्षण और महिलाओं के लिए सीटों का एक तिहाई आरक्षण प्रदान किया गया।
74वां संशोधन अधिनियम 1992
- संविधान में भाग IX-क और 12वीं अनुसूची जोड़ी गई।
- शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक स्थिति एवं सुरक्षा प्रदान की गई, जिसे ‘ नगरपालिकाएं’ नाम दिया गया।
- नई 12th में नगरपालिकाओं की 18 कार्यात्मक मदें जोड़ी गई।
75वां संशोधन अधिनियम 1994
- किराया न्यायालय की स्थापना जो किराया विवादों को सुलझाएं। यह न्यायालय किराया मामलों में मकान मालिक एवं किरायेदार के हितों के संबंध में नियामक एवं नियंत्रण स्थापित करेंगे।
76वां संशोधन अधिनियम 1994
- तमिलनाडु आरक्षण अधिनियम, 1994 को (जो राज्य के शैक्षणिक संस्थानों एवं राज्य सेवाओं को 69 प्रतिशत आरक्षण उपलब्ध कराता है) नौयीं अनुसूची में न्यायिक समीक्षा से संरक्षण के लिए जोड़ा गया। 1992 में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
77वां संशोधन अधिनियम 1995
- सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की प्रोन्नति के लिए आरक्षण की व्यवस्था। इस संशोधन ने उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रोन्नति के संबंध में दिए गए निर्णय को समाप्त कर दिया।
78वां संशोधन अधिनियम 1995
- नौवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों के 27 और भूमि सुधार अधिनियमों को शामिल किया गया। इसके बाद इस अनुसूची में कुल अधिनियमों की संख्या बढ़कर 282 हो गई। परन्तु अंतिम प्रविष्टि संख्या 284 है।
79वां संशोधन अधिनियम 1999
- अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षण एवं लोकसभा व विधान सभाओं में आंग्ल-भारतीय प्रतिनिधित्व को और 10 साल के लिए (2010 तक) बढ़ाया गया।
80वां संशोधन अधिनियम 2000
- केंद्र एवं राज्य के बीच राजस्व की वैकल्पिक अवमूल्यन योजना’ की व्यवस्था। यह व्यवस्था 10वें वित्त आयोग की सिफारिश के बाद की गई। सिफारिश में कहा गया था कि केन्द्रीय करों एवं शुल्कों से प्राप्त कुल आय का 29 प्रतिशत राज्यों के बीच बंटना चाहिए।
81वां संशोधन अधिनियम 2000
- राज्य को शक्ति प्रदान की गई कि किसी वर्ष में भरी न जा सकी आरक्षित श्रेणी की रिक्तियों को अन्य अनुवर्ती वर्ष या वर्षों के दौरान भरी जाने वाली रिक्तियों की पृथक श्रेणी माना जाए। ऐसी रिक्तियों को उस वर्ष की रिक्तियों में न मिलाया जाए जिस वर्ष वे भरी जाएं और उन्हें उस वर्ष की कुल रिक्तियों में 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा में सम्मिलित न माना जाए। दूसरे शब्दों में इस संशोधन ने बैकलॉग रिक्तियों के मामले में 50 प्रतिशत तक की आरक्षण की सीमा को समाप्त कर दिया।
82वां संशोधन अधिनियम 2000
- अनुसूचित जाति एवं जनजाति के पक्ष में यह व्यवस्था कि केंद्र एवं राज्य लोक सेवाओं में आरक्षण एवं प्रोन्नति के मसले पर अंकों एवं योग्यता में छूट का उपबंध।
83वां संशोधन अधिनियम 2000
- अरुणाचल प्रदेश में पंचायतों में अनुसूचित जाति के लिए कोई आरक्षण की जरूरत नहीं है। राज्य की समूची जनसंख्या जनजातीय है, वहां कोई भी अनुसूचित जाति का नहीं है।
84वां संशोधन अधिनियम 2001
- लोक सभा एवं राज्य विधानसभा सीटों के पुनर्निर्धारण पर 25 वर्ष के लिए (2026 तक) पाबंदी बढ़ाई गई। ऐसा जनसंख्या को सोमित करने के लिए किया गया।
- दूसरे शब्दों में. लोकसभा एवं विधानसभाओं में सीटों की संख्या 2026 तक यही रहेगी। यह व्यवस्था भी की गई कि राज्यों में निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण 1991 की जनगणना के आधार पर होगा।
85वां संशोधन अधिनियम 2001
- सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति के मामले (जिनमें अनुसूचित जाति एवं जनजाति के आरक्षण भी हैं) के लिए ‘परिणामिक वरिष्ठता’ को जून 1995 से प्रभावी मानने की व्यवस्था।
86वां संशोधन अधिनियम 2002
- प्रारम्भिक शिक्षा को मूल अधिकार बनाया गया।
- नए अनुच्छेद 21(क) में घोषणा की गई कि ‘राज्यों को 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए निःशुल्क प्रारम्भिक शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए।
- निदेशक तत्वों के मामले में अनुच्छेद 45 की विषय-वस्तु बदली गई. राज्य सभी बालकों को
- चौदह वर्ष की आयु पूरी जाने तक निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा।’
- अनुच्छेद 51क के तहत एक नया मूल कर्तव्य जोड़ा गया जिसे पढ़ा गया. “यह हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य 6 और 14 वर्ष की उम्र तक शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराए।
87वां संविधान संशोधन 2003
- क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण का आधार 2001 की जनगणना के आधार पर होगा न कि 1991 की जनगणना पर जैसा कि 84वें संशोधन अधिनियम, 2001 में व्यवस्था की गई थी।
88वां संविधान संशोधन 2003
- इस अधिनियम द्वारा सेवा कर के संबंध में उपबंध बनाये गये हैं। सेवाओं पर कर केंद्र द्वारा लगाया जायेगा लेकिन इसकी प्राप्तियां केन्द्र और राज्य द्वारा संगृहित और विनियोजित संसद द्वारा सुझावे गये फॉर्मूले के अनुसार की जाएंगी।
89वां संविधान संशोधन 2003
इस संविधान संशोधन अधिनियम, द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग का दो भागों में विभाजन कर दिया गया है। अब इनके नाम क्रमशः राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग एवं राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग होंगे। दोनों ही आयोगों में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा तीन अन्य सदस्य होंगे। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी।
90वां संविधान संशोधन 2003
यह संविधान संशोधन असम में बोडोलैंड टेरिटोरियल एरियाज डिस्ट्रिक से असम विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर-अनुसूचित जनजातियों के लिए पूर्व प्रतिनिधित्व को कायम रखा है।
91वां संविधान संशोधन 2003: PM – अटल बिहारी वाजपेयी
इस संविधान संशोधन अधिनियम, द्वारा मंत्रिपरिषद के आकार को निश्चित कर दिया गया है। इसका उद्देश्य दोपियों को लोक पद धारण करने से रोकना और दल-बदल कानून को मजबूती प्रदान करता है-
- केंद्रीय मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों की अधिकतम संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।
- संसद के किसी भी सदन का सदस्य यदि दल-वदल के आधार पर सदस्यता निरहंक करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य मंत्री होने पर मंत्री पद के लिए भी निरर्हक होगा।
- राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की अधिकतम संख्या विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी किंतु राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 से कम नहीं होगी।
- राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य यदि दल-बदल के आधार पर सदस्यता से निरर्हक करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य मंत्री होने पर मंत्री पद के लिए भी निरहंक होगा।
- संसद या राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य चाहे वह किसी भी दल से संबंधित हो यदि दलबदल के आधार पर सदस्यता से निरहंक करार दिया जाता है तो ऐसा
- सदस्य किसी भी लाभप्रद राजनैतिक पद को धारित करने के लिए भी निरर्हक होगा। ऐसे पद से अभिप्राय है- (i) केंद्र या राज्य सरकार के अधीन कोई पद जहां उस पद के लिये लोक राजस्व से वेतन एवं अन्य सुविधाओं के लिये भुगतान किया जाता है, या (ii) केंद्र या राज्य सरकार के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रणाधीन कोई पद जहां उस पद के लिये लोक राजस्व से वेतन एवं अन्य सुविधाओं के लिये भुगतान किया जाता है, सिवाए जहां वेतन या पारिश्रमिक क्षतिपूरक प्रकृति का हो।
- दसवीं अनुसूची में वर्णित वह उपबंध, जिसके अनुसार यदि किसी दल के एक-तिहाई सदस्य दल-बदल करते हैं तो उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता, इस उपबंध को समाप्त कर दिया गया है। इसका अर्थ है कि दोषियों को फूट के आधार पर कोई संरक्षण प्राप्त नहीं है।
92वां संविधान संशोधन 2003
- संविधान की आठवीं अनुसूची में चार अन्य भाषायें बोडो, डोगरी, मैथिली एवं संथाली जोड़ी गयीं।
- इनके साथ अनुसूचित भाषाओं की कुल संख्या 22 हो गयी है।
93वां संविधान संशोधन 2005: मनमोहन सिंह भारत गणराज्य के 13वें प्रधानमन्त्री थे।
- राज्यों को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिये शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण करने हेतु विशेष उपबंध बनाने की शक्ति प्रदान करता है। इन शैक्षणिक संस्थानों में निजी क्षेत्र के संस्थान।
94वां संविधान संशोधन 2006
- इस संविधान संशोधन द्वारा बिहार को एक जनजातीय मंत्री की नियुक्ति करने की बाध्यता से मुक्त करते हुये इस उपबंध को अब झारखण्ड एवं छत्तीसगढ़ के लिये लागू कर दिया गया है। इन दो नव-गठित राज्यों के साथ ही यह उपबंध अब मध्य प्रदेश एवं ओडीशा में भी प्रभावी हो गया है। जहां यह पहले ही प्रयोग में था।
95वां संविधान संशोधन 2009
- लोकसभा एवं राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों तथा आंग्ल-इंडियन्स के लिए विशेष आरक्षण को अगले 10 वर्षों (2020 तक) बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
96वां संविधान संशोधन 2011
- “उरिया” के स्थान पर “उड़िया” (Odin)। अंग्रेजी भाषा की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित “उरिया” भाषा के उच्चारण को बदलकर “उड़िया” किया गया है।
97वां संविधान संशोधन 2011
- इस संशोधन के द्वारा सहकारी समितियों को एक संवैधानिक स्थान एवं संरक्षण प्रदान किया गया।
संशोधन द्वारा संविधान में निम्नलिखित तीन बदलाव किए गएः
- सहकारी समिति बनाने का अधिकार एक मौलिक अधिकार बन गया।
- राज्य की नीति में सहकारी समितियों को बढ़ावा देने का एक नया नीति निदेशक सिद्धांत का समावेश।
- “सहकारी समितियां” नाम से एक नया भाग-IX-ख संविधान में जोड़ा गया।
98वां संविधान संशोधन 2012
कर्नाटक राज्य के हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए विशेष प्रावधान। विशेष प्रावधान का लक्ष्य एक ऐसे संस्थागत क्षेत्र की स्थापना से है जोकि विकास की जरूरतों को पूरा करने के साथ ही मानव संसाधन को बढ़ाने और शैक्षिक और व्यावसायिक प्रशिक्षण से सेवा और आरक्षण के साथ रोजगार को बढ़ावा देने के लिए स्थानीय कार्यकर्ताओं एवं संस्थानों को धन का न्यायसंगत आवंटन कर सके।
99th Amendments of Indian Constitution: 2014
- सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक नये निकाय “राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग” (National Judicial Appointments Commission) की स्थापाना की।
- हालांकि वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस संशोधन को असंवैधानिक एवं रद्द घोषित कर दिया। परिणामस्वरूप पूर्व में चल रही कॉलेजियम प्रणाली पुनः लागू की गई।
- एक मात्र संसोधन जिसे Supreme Court ने रद्द किया।
100th Amendments of Indian Constitution: 2015
- भारत और बांग्लादेश के बीच भूमि सीमा समझौते का अनुसमर्थन वाला संशोधन।
- भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौता 1974 तथा इसके प्रोटोकॉल 2011 के अनुपालन में। इस उद्देश्य के लिए इस संशोधित अधिनियम ने चार राज्यों (असम, पश्चिम बंगाल, मेघालय एवं त्रिपुरा) के भू-भागों से संबंधित संविधान की पहली अनुसूची के प्रावधानों को संशोधित किया।
101वां संविधान संशोधन 2016: Act 122th
इस संशोधन ने देश में वस्तु और सेवा कर (GST) शासन की शुरूआत का मार्ग प्रशस्त किया। वस्तु और सेवा कर केंद्र और राज्य सरकार द्वारा लगाए जा रहे अप्रत्यक्ष करों की जगह लेगा। इसके द्वारा करों के कैस्केडिंग प्रभाव को हटाने और वस्तुओं और सेवाओं के लिए एक सामान्य राष्ट्रीय बाजार प्रदान करने का लक्ष्य है। प्रस्तावित केंद्रीय और राज्य वस्तु और सेवा कर उन सभी वस्तुओं पर लगाया जाएगा, जिनमें वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति शामिल है, सिवाय उन सभी के जो वस्तु और सेवा कर के दायरे से बाहर रखे गए हैं। तदनुसार, संशोधन में निम्नलिखित प्रावधान किए गये है:
- GST 1 जुलाई 2017 को लागू किया गया था।
- GST लागू करने वाला प्रथम राज्य असम, बिहार, झारखंड ।
- Article 279(A), संशोधन 122th
- वस्तुओं और सेवाओं या दोनों की आपूर्ति के प्रत्येक लेनदेन पर वस्तु और सेवा कर लगाने के लिए कानून बनाने के लिए संसद और राज्य विधानसभाओं को समवर्ती कर लगाने की शक्तियां प्रदान की गई।
- इसने संविधान के तहत ‘विशेष महत्व के घोषित सामान’ की अवधारणा को खारिज कर दिया। 3. वस्तुओं और सेवाओं के अंतर-राज्यीय लेनदेन पर एकीकृत वस्तु और सेवा कर के लगाने के लिए प्रदान किया गया।
- राष्ट्रपति के आदेश से एक वस्तु और सेवा कर परिषद की स्थापना।
- पांच साल की अवधि के लिए वस्तु और सेवा कर की शुरूआत के कारण राजस्व के नुकसान के लिए राज्यों को मुआवजे का प्रावधान किया।
- सातवीं अनुसूची की संघ और राज्य सूची में कुछ प्रविष्टियों को प्रतिस्थापित और लोप किया गया।
102वां संविधान संशोधन 2016
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग(NCBC) को संवैधानिक दर्जा दिया जो 1993 में संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था।
- पिछड़े वर्गों के संबंध में अपने कार्यों से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को राहत दी।
- राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने के लिए राष्ट्रपति को अधिकार दिया।
103वां संविधान संशोधन 2019
- अनुच्छेद 15 के खंड (4) और (5) में वर्णित वर्गों के अलावा अन्य वर्गों के नागरिकों के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10% आरक्षण प्रदान किया गया।
- राज्य को निजी शिक्षण संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए इस तरह के वर्गों के लिए 10% सीटों तक के आरक्षण का प्रावधान करने की अनुमति दी गई है, चाहे वह सहायता प्राप्त हो या राज्य द्वारा सहायता प्राप्त न हो, अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की अपेक्षा करता है। 10% तक का यह आरक्षण मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त होगा।
- राज्य को ऐसे वर्गों के पक्ष में 10% नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का प्रावधान करने को अनुमति दी। 10% तक का यह आरक्षण मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त होगा।
104 va samvidhan sanshodhan: 2020
- यह संशोधन, लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं की सीटों में SC एवं ST के आरक्षण से संबंधित हैं।
- इस संशोधन द्वारा लोकसभा और विधानसभाओं में SC एवं ST के लिए आरक्षण की अवधि को 10 वर्ष (25 जनवरी 2030 तक) और बढ़ाया गया है। पूर्व में इस आरक्षण की समय सीमा 25 जनवरी, 2020 तक थी।
- इस संविधान संशोधन द्वारा लोकसभा में 2 एंग्लो-इंडियन समुदाय के प्रदत्त आरक्षण को समाप्त कर दिया गया है।
105 va samvidhan sanshodhan: 2021
- राज्यों से, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की पहचान करने और सूची बनाने का अधिकार वापस दिया गया।
- अनुच्छेद 342A में संशोधन किया गया, यह 18 अगस्त 2021 को लागू हुआ।
106th samvidhan sanshodhan: 2023
- यह अधिनियम लोकसभा, प्रत्येक राज्य की विधानसभा एवं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में कुल सीटों का एक तिहाई 15 वर्षों के लिए महिलाओं के लिए 33% आरक्षित करने का प्रावधान करता है।
Conclusion: Amendments of Indian Constitution
भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण संशोधन न केवल इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, बल्कि ये देश के कानूनी और सामाजिक ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव भी लाते हैं। UPSC जैसे परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए इन संशोधनों की जानकारी होना आवश्यक है।